अपने चित्त का दोष बिना गुरु के मिटा पाना मुश्किल है : अतुल कृष्ण जी महाराज

नैहरियां, अम्ब, / 30 दिसंबर/ एन एस बी न्यूज़

साधक मन से भी किसी का बुरा न सोचे।क्योंकि ऐसा करने से मन अस्थिर होगा, फिर प्रभु के भजन-स्मरण में बाधा उत्पन्न होगी। हम जब किसी को अपशब्द बोलते हैं तो सामने वाला भी अपनी शक्ति के अनुरूप प्रतिकार करता है। अतः अपने चित्त को अशांत न होने दें। भक्त हो, ज्ञानी हो अथवा योगी हो व्यवहार में सावधानी अति आवष्यक है। गलत निर्णय जीवन में मुसीबतें लाती हैं, जिसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, अन्य नहीं। हर पल अपनी ही चिंता में डूबें रहें, यह स्वभाव ठीक नहीं। प्रभु चिंतन करें, जिसमें जीवन का खजाना छुपा हुआ है।
उक्त अमृतवचन श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीयदिवस में परम श्रद्धेय अतुल कृष्ण जी महाराज ने नैहरियां में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जो लोग प्रभु के भक्तों के निकट आते हैं उनका भी स्वभाव बदल जाता है।अपने चित्त का दोष बिना गुरु के मिटा पाना मुश्किल है। जो मनुश्य शुभ कर्मों का त्याग करते हैं वे तेजहीन हो जाते हंै। अशुभ चिंतन से हमारा पतन निश्चित है।अधिकार संपन्न जीवन के लिए भगवान का आश्रय उत्तम साधन है। अंधानुकरण हमें विकाससे भटका देता है। ईश्वर की प्रार्थना उन्नति के शिखर तक ले जाती है। जिस परमात्मा से समस्त जगत विस्तृत है उसे भूले रहना मानवीय दुर्बलता है।
