February 23, 2025

भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) रोपड़ ने नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एन.एच.ए.आई.) के साथ दो एमओयू साइन किए

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**पहली परियोजना पहाड़ी सडक़ों के लिए ढलान निगरानी और भूस्खलन जोखिम मात्राकरण पर

**दूसरी परियोजना राजमार्ग तटबंध के लिए भराई सामग्री के रूप में चावल भूसी राख, गन्ने की डंठल राख और कोयला राख के उपयोग पर

**परियोजना के माध्यम से भूस्खलन शमन उपायों की भी की जाएगी सिफारिश

**भूजल प्रदूषण और भूजल प्रदूषण में चावल की भूसी राख, गन्ने की डंठल राख और बॉटम ऐश (कोयला राख) सामग्रियों के प्रभाव की जांच के लिए पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन भी होगा

रूपनगर / 30 अक्तूबर / न्यू सुपर भारत न्यूज़:

आई. आई. टी रोपड़ और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एन.एच.ए.आई) ने दो शोध परियोजनाओं के लिए हाथ मिलाया है। पहाड़ी सडक़ों के लिए ढलान निगरानी और भूस्खलन जोखिम मात्राकरण पर पहली परियोजना और दूसरी राजमार्ग तटबंध के लिए भराई सामग्री के रूप में चावल भूसी राख, गन्ने की डंठल राख और कोयला राख के उपयोग पर है।


भूस्खलन को दुनिया भर के महत्वपूर्ण मामलों में प्रमुख प्राकृतिक खतरों में से एक के रूप में पहचाना जाता है।  राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार भारत के कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 15 प्रतिशत भूस्खलन खतरे से प्रभावित है। ऐसा ही एक स्थान हिमालयी क्षेत्र है, जहां पूर्व में कई विनाशकारी भूस्खलन की सूचना मिली है । भूस्खलन से बुनियादी ढांचे खासकर पहाड़ी सडक़ों के लिए गंभीर खतरा पैदा होता है । वर्तमान अध्ययन का उद्देश्य हिमालयी क्षेत्र में राजमार्ग खंड के लिए भूस्खलन के खतरे की मात्रा निर्धारित करना है। अध्ययन क्षेत्र एन.एच.ए.आई के साथ परामर्श से तय किया जाएगा। वर्तमान अध्ययन में रिमोट सेंसिंग और भू-तकनीकी परीक्षण आंकड़ों के आधार पर व्यापक भूस्खलन जोखिम विश्लेषण किया जाएगा। विश्लेषण के आधार पर इस परियोजना के माध्यम से उचित भूस्खलन शमन उपायों की भी सिफारिश की जाएगी। इसके अलावा, इस अध्ययन में अनुशंसित भूस्खलन शमन योजना के कार्य का आंकलन करने के लिए सेंसर और डेटा संग्रह करने वालों से मिलकर एक निगरानी प्रणाली स्थापित करने का भी प्रस्ताव है।
इस प्रोजेक्ट के लिए जांचकर्ता आई.आई.टी. रोपड़ के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. नवीन जेम्स, डॉ .रीत कमल तिवारी और आई.आई.टी. रोपड़ के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के डॉ सी.के. नारायणन हैं।


परियोजना ‘चावल भूसी राख, गन्ने आदि की डंठल राख और कोयले की राख राज्मार्ग तटबंध के लिए भराई सामग्री’ सडक़ निर्माण में एक स्थिर तटबंध के लिए भराई सामग्री के रूप में चावल भूसी राख, गन्ने आदि की डंठल राख और कोयले की राख जैसे कृषि और औद्योगिक कचरे के उपयोग की संभावना की जांच करता है। एक स्थिर तटबंध फुटपाथ अत्यधिक विरूपण के बिना यातायात भार सहन करने में सक्षम होना चाहिए। इन दिनों तटबंध निर्माण के लिए संकुचित मिट्टी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।


चावल की भूसी चावल उत्पादक क्षेत्रों, विशेष रूप से पंजाब में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जबकि खोई राख चीनी कारखानों का प्रतिफल है । जबकि कोयला राख, कोयले को जलाने के उपरांत प्रतिफल है जो भट्टियों के नीचे से एकत्र की जाती है। चावल भूसी राख, खोई राख और कोयला राख के प्रदर्शन का विश्लेषण किया जाएगा, और एक इष्टतम राख मिश्रण अनुपात प्रस्तावित किया जाएगा। यातायात भार और भूकंपीय भार के तहत तटबंध सामग्री के रूप में इन सामग्रियों की प्रतिक्रिया का भी विश्लेषण किया जाएगा। भूजल प्रदूषण और भूजल प्रदूषण में इन सामग्रियों के प्रभाव की जांच के लिए पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन भी किया जाएगा । यह परियोजना चार साल के लिए है और पिछले साल में प्रस्तावित मिक्स का इस्तेमाल हाईवे स्ट्रेच के निर्माण में किया जाएगा और सडक़ के प्रदर्शन का आकलन एक साल के लिए किया जाएगा।


इस परियोजना के लिए जांचकर्ता डॉ. रेस्मी सेबेस्टियन (पीआई) और डॉ. रहीना एम (सह-पी.आई.), सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आई.आई.टी रोपड़ हैं ।

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