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गौशाला संतोषगढ़ में धार्मिक कार्यक्रम आयोजन



संतोखगढ़ / पंकज 
श्री कृष्ण जी का चरित्र अत्यंत उदात व आप्त है। यदि मानव उनके द्वारा दी शिक्षाओं से
प्रेरणा ग्रहण करे तो उसका जीवन स्वर्ग तुल्य बन सकता है। इन्हीं शिक्षाओं को बहुत सुगमता से जन मानस तक पहुंचाने के लिए गौशाला  संतोषगढ़ में, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से तीन दिवसीय श्री कृष्ण कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन चल रहा है।

जिसके दूसरे दिन में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी सुश्री रुपेश्वरी भारती जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जिसे किसी एक परिभाषा में चित्रित ही नहीं किया जा सकता। कहीं ये चितचोर मुरलीधर हैं, तो कहीं दुष्टदलन चक्रधर! कहीं रसिकबिहारी रागी हैं, तो कहीं परम वीतरागी! कहीं ऐश्वरयुक्त द्वारिकाधीश हैं, तो कहीं योग के दीक्षादायक महायोगेश्वर। ये ही तो हैं जिन्होंने संसार में एक ओर तो गोप गोपिकाओं के माध्यम से भक्ति विरह की सरस धारा प्रवाहित की, वहीं दूसरी ओर समस्त उपनिषदों को दुहकर गीता रूपी दुग्धामृत अर्जुन के निमित से सपूर्ण मानव जाति को दिया। अवतारवाद की व्याखया करते हुए साध्वी जी ने कहा कि जब-जब इस धर्म की ग्लानि होती है तथा अधर्म का अयुत्थान होता है तब-तब भगवान स्वयं को इस विश्व में अवतरित करते हैं। अजन्मा जन्म को स्वीकार कर लेता है। समाज की वर्तमान स्थिति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा किआज प्रत्येक मनुष्य का अंत:करण अंधकारमय है। अज्ञानता के तम से आच्छादित है। जब जब मानव के भीतर अज्ञानता व्याप्त होती है, तब तब मानवों का समाज मानवता से रिक्त हो जाता है। मानव में मानवीय गुणों का ह्रास होने लगता है। समाज में अधर्म, अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार, व्यभिचार आदि कुरीतियाँ अपना सिर उठाने लगती हैं। यही कारण है कि हमारे ट्टषि मुनियों ने उस परम तत्व के समक्ष ये प्रार्थना की है-हे प्रभु! हमारे भीतर के अंधकार को दूर कीजिए ताकि ज्ञान प्रकाश को पाकर हम अपने जीवन को सुन्दर बना सके। जब तक मानव अज्ञानता के गहन अंधकार से त्रस्त रहेगा तब तक उसका सर्वांगीण विकास संभव नहीं है। अंधेरा हमें भ्रमित भी करता है और भयभीत भी करता है। प्रकाश में सब कुछ स्पष्ट दिखता है। न कोई भ्रम रहता है न ही भय । जिस प्रकार बाहर के प्रकाश से बाह्य अंधकार दूर होता है उसी प्रकार आंतरिक ज्ञान प्रकाश से आंतरिक अज्ञान तमस नष्ट होता है। ज्ञान की प्राप्ति किसी पूर्ण गुरु की शरण में जाकर ही होगी, जो मानव के भीतर उस ईश्वरीय प्रकाश को प्रकट कर देते हैं। यही कारण है कि शास्त्रें में जब भी इस ज्ञान प्रकाश के लिए मानव जाति को प्रेरित किया तो इसकी प्राप्ति हेतु गुरु के सानिध्य में जाने का उपदेश दिया। प्रभु की कथा ने कितने ही जीवों के जीवन को निर्मल किया है। यदि मानव भगवान श्री कृष्ण के चरित्र से प्राप्त शिक्षा व संदेश को जीवन में धारण करले तो नि:संदेह एक आदर्श मानव का निर्माण होगा। जब एक आदर्श मानव का निर्माण होगा तब एक आदर्श परिवार का गठन होगा। यदि एक आदर्श परिवार का गठन होगा तो एक आदर्श समाज, आदर्श राष्ट्र अंततोगत्वा एक आदर्श विश्व स्थापित होगा। परन्तु विड•बना का विषय है कि आज कितनी ही प्रभु की गाथाएं गाई जा रही है पर समाज की दशा इतनी दयनीय है। मात्र केवल प्रभु की कथा को कह देना या सुन लेना ही पर्याप्त नहीं है। प्रभु श्री कृष्ण के चरित्र से शिक्षा ग्रहण कर उसका जीवन में अनुसरण करना होगा।सारा पंडाल नंद महोत्सव के कारण गोकुल गांव की भांति लग रहा था। जब नन्हे से कृृष्ण कन्हैया को पालने में डाला गया तो सभी श्रद्धा से नतमस्तक हो उठे एवं सारा पंडाल ब्रजवासियों की भांति नाच उठा।
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