December 27, 2024

शिमला में इस्पात मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की “परिवर्तन, ग्रीन स्टिल की ओर” विषय पर बैठक आयोजित

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नई दिल्ली / 6 मई / न्यू सुपर भारत

केंद्रीय इस्पात मंत्री श्री राम चंद्र प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में इस्पात मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक “परिवर्तन,  ग्रीन स्‍टील की ओर” विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए 6 मई, 2022 को शिमला में बुलाई गई। अध्यक्ष श्री सिंह ने हितधारकों से आग्रह किया कि वे एक समयबद्ध कार्य योजना के विकास के लिए एक साथ आएं और अभी तक की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप इस्पात उद्योग से उत्सर्जन को कम करने के लिए ठोस प्रयास करें ताकि ग्रीन स्टील के उत्पादन के तय लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके और “आत्मनिर्भर भारत” को बढ़ावा दिया जा सके।

इस बैठक में समिति के सदस्यों, इस्पात मंत्रालय तथा इस्पात उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों तथा विशेषज्ञों के बीच वर्तमान परिदृश्य और  ग्रीन स्‍टील की ओर परिवर्तन को बढ़ावा देने के बारे में उपयोगी चर्चा हुई। इस बैठक में इस्पात उद्योग द्वारा हरित इस्पात का उत्पादन करने के लिए अपनाई जाने वाली विभिन्न रणनीतियों और प्रौद्योगिकियों, उसके लाभ एवं हानि, उनके प्रौद्योगिकी तैयारी स्तर (टीआरएल) के साथ-साथ इस बात पर भी चर्चा की गई कि इसे व्यावसायिक स्तर पर कब तक उपलब्ध कराया जा सकेगा।

चर्चा का फोकस लोहे के उत्पादन में प्रयोग के लिए ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग की संभावनाओं और सीओपी26 में की गई प्रतिबद्धताओं के अनुरूप उत्सर्जन को कम करने के लिए सीसीयूएस प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर था। बैठक में हरित इस्पात के उत्पादन की दिशा में उठने वाले मुद्दों और बाधाओं को दूर करने के लिए आवश्यक सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत पर भी चर्चा की गई।

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बैठक में संसदीय सलाहकार समिति के सदस्यों, सांसद श्री विद्युत बरन महतो, चंद्र प्रकाश चौधरी, जनार्दन सिंह सिग्रीवाल, प्रतापराव गोविंदराव पाटिल चिखलीकर, एस. ज्ञानथिरवियम, सप्तगिरि शंकर उलाका, विजय बघेल और अखिलेश प्रसाद सिंह ने भाग लिया।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में कमी के संबंध में लौह और इस्पात क्षेत्र विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसकी उत्पादन प्रक्रिया में जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा और रिडक्टेंट का उपयोग बेहद जरूरी है। कोयले पर आधारित ऊर्जा और रिडक्टेंट पर आधारित होने के कारण भारतीय लौह और इस्पात उद्योग का उत्सर्जन अन्य उद्योगों के मुकाबले अधिक है। अतः भारतीय इस्पात उद्योग के लिए अपने उत्सर्जन को पर्याप्त रूप से कम करना अनिवार्य है। सीओपी26 में की गई प्रतिबद्धताओं के मद्देनजर इसे कम करने का दबाव दिन प्रतिदिन  बढ़ता जा रहा है।

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