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कुल्लू दशहरा : 374 साल पुरानी परंपरा का महापर्व

कुल्लू / 13 अक्तूबर / न्यू सुपर भारत /

374 साल पुराना अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा कई परंपराओं और मान्यताओं को समेटे हुए है। भगवान रघुनाथ की मूर्ति को 1650 में अयोध्या से कुल्लू लाया गया था। रघुनाथ के सम्मान में देवी-देवताओं का महाकुंभ कुल्लू दशहरा मनाया जा रहा है।

देवी-देवताओं का महाकुंभ

तब से लेकर 1960 तक जिले के सैकड़ों देवी-देवता अपने ही खर्चे पर दशहरा उत्सव में भाग लेते आए हैं। दशहरा के लिए देवता के देवलू घर से ही राशन लेकर आते थे। दूरदराज से आने वाले देवी-देवताओं को आने-जाने में 12 से 15 दिनों का समय लगता था। अब सड़कों की सुविधा होने से देवताओं को दोनों तरफ की आवाजाही में एक हफ्ते का ही समय लगता है।

विभिन्न देवी-देवताओं की भागीदारी

दशहरा के लिए 200 किमी दूर से आने वाले देवताओं में चंभू, शरशाई नाग, सप्तऋषि, देवता खुडीजल, व्यास ऋषि, कोट पझारी, टकरासी नाग, शृंगा ऋषि, बालू नाग, शेषनाग बंजार, माता बूढ़ी नागिन, मनु ऋषि, चोतरू, शमशरी महादेव, बिशलू नाग व जोगेश्वर महादेव शामिल हैं। माता हिडिंबा कुल्लू के रामशिला व बिजली महादेव सुल्तानुपर पहुंच गए हैं।

सुरक्षा व्यवस्था

इस महापर्व के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के लिए 1,400 जवान तैनात रहेंगे। ड्रोन के साथ-साथ सीसीटीवी कैमरों से भी नजर रखी जाएगी।

कुल्लू दशहरा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, जो हर साल श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

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