जब हम भगवान को अपना मानेंगे तो प्रेम स्वाभाविक ही जागृत हो जाएगा। अभी हम संसार को अपना मानते हैं इसीलिए संसार में प्रेम बढ़ता जाता है। चूल्हे पर रखी हुई बल्टोई में दाल-चावल भी प्रेम की गरमी से नाच उठते हैं। यद्यपि दाल-चावल जड़ प्रकृति के हैं, पहले तो वे जल में षांत पड़े रहते हैं। पर जैसे-जैसे गरमी बढ़ती जाती है वे तेजी से नाचने लगते हैं। हम सब तो जड़ नहीं हैं, प्रभु की कृपा से परम चैतन्य हैं। फिर ईष्वरीय प्रेम में नाच उठें इसमें कौन से आष्चर्य की बात है।
उक्त अमृतवचन श्रीमद् भागवत कथा के छठें दिवस में परम श्रद्धेय अतुल कृश्ण जी महाराज ने कम्यूनिटी सेंटर, ज्वार में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि इस संसार में हम कमल पत्र की तरह रहें। कमल पत्र जल से ही पैदा होता है, सदैव पानी में ही रहता है पर पानी में डुबोने पर भी वह जल से लेष मात्र भी संलिप्त नहीं होता। जो निरंतर भगवान की कथा सुनते रहते हैं वे भवसागर को सहज ही पार कर जाते हैं। मन बलवान होगा तो हमें संसार की ओर ले जाएगा। बुद्धि बलवान होगी तो हमें भगवान की ओर ले जाएगी।
महाराजश्री ने कहा कि प्रभु का बनकर सभी संकल्पों, विकल्पों, बाधाओं एवं विपत्तियों से परे हरि रस का आनंद अनुभव करें। जब तक जिन्दगी है कभी काम से फुर्सत नहीं मिलेगी। इन्हीं उलझनों में हरि भजन के लिए भी समय निकालना पड़ेगा। आज कथा में भगवान श्रीकृश्ण की अनेक बाल लीलाएं, महारास, कंस-वध एवं श्रीरुक्मिणि विवाह का प्रसंग सभी ने अत्यंत तन्मयता से सुना।
आज भी सैकड़ों श्रोताओं के अतिरिक्त प्रमुख रूप से कथा के मुख्य यजमान ओमदत्त षर्मा, सुरेष षर्मा, रविदत्त षर्मा, चैधरी रमेषचंद एडवोकेट, प्रेमचंद रक्कड़, षिवकुमार षर्मा, प्रकाषचंद धीमान, विवेक षर्मा, हिमांषु वषिश्ठ, प्रियांषु वषिश्ठ, रछपाल सिंह, मास्टर किसनचंद, नानकचंद दत्ता, राजेष धीमान, मुकेष धीमान, सुदेष कुमारी, नीलम षर्मा, किरन षर्मा, अलका षर्मा, स्तुति षर्मा, षिवानी भारद्वाज सहित अनेक गणमान्य सज्जन उपस्थित रहे।