शिमला / 01 नवम्बर / न्यू सुपर भारत
उपायुक्त शिमला आदित्य नेगी ने कहा कि हमें युवा पीढ़ी को अपनी पहाड़ी संस्कृति से जोड़े रखने के लिए समुचित कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति किस दिशा में जा रही है इस पर हम सभी को चिंतन करने की आवश्यकता है।
आदित्य नेगी आज यहाँ गेयटी थियेटर शिमला में आयोजित राज्य स्तरीय पहाड़ी दिवस कार्यक्रम के दूसरे दिन पहाड़ी कवि सम्मेलन का शुभारम्भ करने के पश्चात उपस्थित लोगों को सम्बोधित कर रहे थे। इस सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में के. आर. भारती उपस्थित रहे तथा पहाड़ी कवि सम्मेलन की अध्यक्षता सूरत ठाकुर ने की।
उन्होंने सभी को पहाड़ी दिवस की बधाई देते हुए कहा कि हमारे मेले तथा त्योहारों में भी मूल संस्कृति मिश्रित होती जा रही है जो कि एक चिंता का विषय है। उन्होंने प्रदेश भर से आए सभी साहित्यकारों को युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक करने तथा अन्य ज्वलंत मुद्दों पर मिलकर कार्य करने का आहवान किया। उन्होंने बताया कि 01 नवंबर 1966 को पहाड़ी राज्य काँगड़ा, कुल्लू, लाहौल स्पीति का क्षेत्र हिमाचल में सम्मिलित हुआ था तथा इस उपलक्ष में पहाड़ी दिवस मनाया जाता है और भाषा एवं संस्कृति विभाग हर वर्ष इस दिवस को मनाता है। इस दिवस को मानाने का उदेश्य पहाड़ी भाषा को बढ़ावा देना है क्यों की आधुनिकता के ज़माने में लोग अपनी मातृभाषा को भूलते जा रहे हैं और अन्य भाषाओँ की ओर उनका रुझान बढ़ रहा है। इसलिए युवाओं में पहाड़ी भाषा के प्रति रुझान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि उन्हें अपनी भाषा, संस्कृति और सभ्यता से रूबरू करवाया जा सके। इसी कड़ी में आज पहाड़ी भाषा पर आधारित काव्य सम्मलेन आयोजित किया गया जिसमें एक से बढ़कर एक उत्तम दर्जे के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दी जिसमें प्राकृतिक आपदा सहित विभिन्न जवलंत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
इस समारोह में आमंत्रित कवियों में सोलन से यादव किशोर गौतम ने ‘खींदा बीचे नेता जम्मे’, डाॅ. उत्तम चैहान, प्रमोद कुमार ने ‘पहाड़ी बोली मीठी बोली बोले हिमाचली लोग’, के. सी. परिहार, हेमन्त अत्री ने ‘करवा चैथा रा आ गोआ त्यौहार’, रामलाल वर्मा ने ‘तिन्ना रा नेई राखदा मिंझो कौऐ ख्याल’, बिलासपुर से रतन चंद निर्झर ने ‘कानूनी व्याटणा एतणी दूर’, सुरेन्द्र मिन्हास ने ‘किती बाहणी फसलां हुण किती खेलगे खेला’, अमर नाथ धीमान ने ‘इक दिनहऊँ चलदा चलदा’, डाॅ. ओम प्रकाश शर्मा ने ‘छोटू र बजुर्ग’, रोशन लाल पराशर ने ‘सुअख दुअख म्हारे करमा री खेती’, कल्पना गांगटा ने ‘बदला जमाना’, हितेन्द्र शर्मा ने ‘पहाड़ी रा सम्मान’, दिनेश गजटा ने ‘सुचिंयों कौरी पिनो’, नारायण सिंह वर्मा ने ‘ऐ अस्सो मजदूरा तेरी जिन्दगी रा बसेरा’, पूजा सूद ने ‘बड़ा सोहणा, बड़ा छैल म्हांचल मिंजो लगदा’, वंदना राणा ने ‘मेरे इमाचले दिया गल्लां बखरियां’, धर्मपाल भारद्वाज ने ‘हामैं हिमाच़ौली’, मण्डी से डाॅ. मनोहर अनमोल ने ‘बरखा’, अनु ठाकुर ने ‘नशे की आग’, हमीरपुर से दलीप सिंह ने ‘दो भांडे अधूचैं जरूर टकरांदे’ होशियार सिंह गौतम ने ‘मत उडांदे असौ दा हासा’, ऊना से ओम प्रकाश शर्मा ने ‘मही नाम का गांव जिहदा’, शिवानी देवी, सुलेखा देवी, कुन्दन लाल शर्मा ने ‘जित्यंु वणाह वसूरी वरना’, कांगड़ा के शक्ति चंद राणा ने ‘कदी पुच्छ मेरी वी’, रमेश चन्द मस्ताना, सिरमौर से ईश्वर दास राही ने ‘बिना मोबाईले गोरू वो’, प्रेमपाल आर्य ने ‘ठगड़ी बात’, नरेन्द्र कुमार शर्मा, महेश शर्मा, नवल ठाकुर, भूपरंजन, जगदीश कश्यप, नरेन्द्र कुमार शर्मा, भूप सिंह रंजन व अमृतांजलि ने पहाड़ी कविता पाठ किया।
इस दौरान विभिन्न कवियों ने अपनी रचनाओं की किताबें उपायुक्त को भेंट की।
कार्यक्रम के प्रारंभ विभाग की सहायक निदेशक कुसुम संघाईक ने मुख्य अतिथि तथा अन्य गणमान्य अतिथिगणों तथा पूरे प्रदेश से आए विद्वानों का स्वागत किया। कार्यक्रम का अगला मंच संचालन प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश मस्ताना ने किया।
समारोह के अंत में विभाग के संयुक्त निदेशक मनजीत शर्मा ने उपस्थित समस्त साहित्यकारों का धन्यवाद किया।
इस कार्यक्रम में विभाग के भाषा अधिकारी सुरेश राणा, अनिल हारटा, सरोजना नरवाल व संतोष कुमार उपस्थिते रहे।
लोक गायन, नृत्य व वाद्य यंत्रों की प्रस्तुतियों ने किया लोगों का मनोरंजन
इस दो दिवसीय साहित्यिक आयोजन में हिमाचल प्रदेश के लगभग 60 विद्वानों ने भाग लिया तथा सांस्कृतिक समारोह में एम्फी थियेटर शिमला में हिमाचल के पारम्परिक लोक वाद्य, लोक नाट्य, लोक गायन व लोकनृत्यों के माध्यम से विभिन्न जिलों की सांस्कृतिक झलक प्रदर्शित की गई।
कार्यक्रम के अंतिम दिन दिनांक 01 नवम्बर, 2023 को ठोडा लोकनृत्य (शिमला), मुसादा गायन (चम्बा), बुडियाच लोकनृत्य (कुपवी, शिमला), झूरी लोक गायन (शिमला), लोक रामायण/भर्तृहरि लोक गायन (शिमला/सिरमौर), पांरम्परिक लोक वाद्यदल (करसोग मण्डी) व करयाला/स्वांग (शिमला) द्वारा हिमाचल की सांस्कृतिक झलक प्रदर्शित की गई।