शिमला / 10 फ़रवरी / न्यू सुपर भारत
हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी द्वारा वर्ष 2017 तथा 2018 के लिए ललित कला और निष्पादन कला सम्मान चयन समिति की स्वीकृति और मुख्यमंत्री एवं अध्यक्ष अकादमी तथा कार्यकारी परिषद् के अनुमोदन के उपरांत घोषित हुए हैं। यह जानकारी हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के सचिव डाॅ. कर्म सिंह ने आज यहां दी।
शिक्षा, भाषा कला एवं संस्कृति मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने बताया कि अकादमी द्वारा घोषित कला सम्मान और साहित्य पुरस्कार इसी वित्त वर्ष में मुख्यमंत्री एवं अध्यक्ष भाषा कला एवं संस्कृति अकादमी द्वारा भव्य समारोह में प्रदान किए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि हिमाचल अकादमी प्रदेश के साहित्यकारों तथा कलाकारों के प्रोत्साहन तथा सम्मान के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कार्य कर ही है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान सरकार ने अकादमी के अनुदान में बढ़ोतरी की है और अब प्रदेश में कला संस्कृति भाषा साहित्य के संरक्षण, प्रकाशन तथा लेखकों और कलाकारों को लाभ देने वाली कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को प्राथमिकता देते हुए वित्तिय लाभ देने के लिए सफल एवं सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं।
वर्ष 2017 का ललित कला सम्मान डाॅ नंद लाल ठाकुर को चित्रकला विधा में तथा 2018 का ललित कला सम्मान खिम्मी राम को पारम्परिक शिल्प कला में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिया गया है।निष्पादन कला सम्मान वर्ष 2017 के लिए श्री संजय सूद को तथा वर्ष 2018 के लिए श्री एस.डी. कश्यप को चुना गया है।
निष्पादन कला के क्षेत्र में कला सम्मान पाने वाले संजय सूद का रंगमंच कलाकार एवं नाट्य निर्देशन के क्षेत्र में विशेष योगदान रहा है। इन्होंने आगरा बाजार, खामोश अदालत जारी है, गौदान, होली, आषाढ़ का एक दिन, बैरी, राजा का बाजा, सैंया भए कोतवाल, खड़िया का घेरा, मारीच ये संवाद, एल्डरी सन, पंछी ऐसे आते हैं आदि लगभग 35 नाटकों में अभिनय किया है। नाट्य निर्देशन में संजय सूद के रंग नगरी, बहुत बड़ा सवाल, समरथ को नहीं दोष गोसांई, पेपर वेट, बड़े भाई साहब, मोक डाक्टर आदि नाटक उल्लेखनीय हैं।
संजय सूद द्वारा कुछ कहानियों का भी मंचन किया गया है जिनमें सड़क, मनोवृत्ति, डाॅक्टर की फीस, संक्रमण (फिर याद आए पापा), गुलकी बन्नो, ईदगाह, निराश पीढ़ी, गुल्ली डंडा तथा दल-दल आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त संजय सूद ने प्रदेश की विभिन्न रंग टोलियों को रंगमंच के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने में सदैव सराहनीय सहयोग प्रदान किया ताकि रंगकर्म की निरंतरता और प्रखर हो सके।
संजय सूद आकाशवाणी शिमला के ब्री हाई ग्रेड कलाकार हैं और इन्होंने रेडियो नाटकों में प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है। आकाशवाणी, रेडियो शिमला तथा हमीरपुर से प्रसारित नाटक श्रृखलाएं-गई भैंस पानी में, शटराला, चैपाल, भायतू अनेकों नाटकों में प्रमुख भूमिका निभाई है। संजय सूद ने करीब, माया मेम साहब, थ्री इडियट्स, मैं ऐसा ही हूं, मदारी, द म्यूजिक टीचर, अंटू की अम्मा, शिमला मिर्ची, हो गया दिमाग का दहीं, तमाशा आदि हिन्दी फिल्मों और स्वास्तिक कन्नड़ फिल्म में भी दमदार अभिनय किया है।
दूरदर्शन, शिमला व दिल्ली के अंतर्गत प्रसारित विभिन्न टैली फिल्मों में इन्होंने प्रमुख भूमिकाएं अदा की हैं। इन्होंने लेखन के अंतर्गत नाट्य एवं रंग समीक्षाओं के अतिरिक्त कलाकर्म से सम्बद्ध विभिन्न आलेखों के माध्यम से भी प्रतिष्ठित अखबारों व पत्रिकाओं में रंगमंच व कला के विभिन्न पक्षों को उकेरने में कामयाबी हासिल की है।
संजय सूद हिमाचल प्रदेश के निष्पादन कला के प्रख्यात कलाकार हैं, जिन्होंने रंगमंच के क्षेत्र में बतौर कलाकार, निर्देशक एवं संयोजक के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण उपलब्धियां अर्जित करके रंगमंच के क्षेत्र में प्रशंसनीय योगदान प्रदान किया है।
ललित कला के क्षेत्र में कला सम्मान पाने वाले डाॅ. नंद लाल ठाकुर, धामी, शिमला के निवासी तथा ललित कला के प्रसिद्ध कलाकार हैं तथा एम.वी.ए पैटिंग (गोल्ड मैड लिस्ट) एम.ए. इतिहास तथा विजुअल आर्ट में पीएचडी है। डाॅ. नंदलाल पहाड़ी चित्रकला एवं आधुनिक चित्रकला के सिद्धहस्त कलाकार है। इन्होंने ललित कला की विभिन्न विधाओं में महारत हासिल की है।
डाॅ. नंद लाल ठाकुर, शिमला जहांगीर आर्ट गैलरी मुम्बई, महाराष्ट्र तथा मागटी क्लब तवीलिसी जार्जिया में भी स्वनिर्मित चित्रों की सोलो प्रदर्शनी कर चुके हैं।
डाॅ. नंद लाल अनेकों संस्थानों के साथ मिलकर कई सफल कला आयोजन, सेमिनार, कार्यशाला, प्रदर्शनी आदि में भाग लेकर अपनी प्रतिमा एवं सृजन कला का प्रदर्शन करते हुए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मुंबई, जम्मू आदि प्रांतों में अनेक कार्यशालाओं में चित्र निर्माण तथा प्रदर्शनी का आयोजन कर चुके हैं। विभिन्न विश्वविद्यालयों में सेमिनारों में भाग, शोधपत्र वाचन तथा कला प्रशिक्षण आदि विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से इनका ललित कला के उन्नयन एवं प्रोत्साहन में विशेष योगदान रहा है।
डाॅ. नंद लाल ठाकुर वर्तमान में राष्ट्रीय ललित कला अकादेमी, दिल्ली की सामान्य परिषद में हिमाचल प्रदेश के प्रतिनिधि सदस्य हैं तथा इसी साल इन्हें ललित कला अकादेमी दिल्ली का उपाध्यक्ष चुना गया है। वर्तमान में डाॅ. नंद लाल ठाकुर, ललित कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर चित्रकला प्रदर्शनी, कार्यशाला सेमिनार वर्चुअल वेबिनार तथा विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन के माध्यम से सराहनीय कार्य कर रहे हैं।
वर्ष 2018 का निष्पादन कला सम्मान प्राप्त करने वाले एस.डी.कश्यप हिमाचल प्रदेश के प्रख्यात गायक, संगीतकार एवं संगीत निर्देशक हैं। इन्होंने वर्ष 1970 में सरकारी नौकरी छोड़कर 70 के दशक में मुम्बई में रहकर फिल्मों तथा धारावाहिकों से संगीतकार के रूप में ख्याति अर्जित की। इसके बाद इन्होंने हिमाचल को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। पहले जिला मण्डी के सकरोह में फिर पनारसा में रिकाॅर्डिंग स्टूडियो की स्थापना करके लोक गीतों की असंख्य कैंसेटों तथा सीडी का निर्माण करके हिमाचल के पारम्परिक लोक संगीत को अपने संगीत तथा निर्देशन से लोकप्रिय बनाया और अनेक लोक गायकों को भी मंच प्रदान किया। इन्होंने मंडी में वर्मन आॅक्स्ट्रा ग्रुप की स्थापना भी की। फिल्मी संगीतकार के रूप में अपने संगीत से इन्होंने कोबरा, अनोखा मोड़ फिल्म में छाप छोड़ी। दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक अजनबी, उसूल में भी लोकप्रिय संगीत निर्देशक रहे।
एस.डी. कश्यप ने प्रख्यात पाश्र्व गायिका आशा भौंसले, अनुराधा पौडवाल, सुरेश वाडेकर, मोहम्मद अजीज, विनोद राठौड़ आदि प्रख्यात गायकों के गीतों का भी निर्देशन किया। इनकी पहली पहाड़ी एल्बम साउंड आॅफ माऊटेन से बनी, जिसमें सविता साथी के साथ, स्वयं भी गाया। इसके बाद 1986 में सकरोह मण्डी में रिकाॅर्डिंग स्टूडियो स्थापित किया, फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2001 में पनारसा में डिजिटल स्टूडियो स्थापित किया, जो आज भी कार्यरत है।
एस.डी. कश्यप ने अब तक लगभग 4000 से अधिक गीत रिकाॅर्ड करके संगीतबद्ध किए हैं तथा वे लगभग 1000 गीत स्वयं लिखकर स्वरबद्ध भी कर चुके हैं। हिमाचल प्रदेश के प्रख्यात लोक गायक, बलबीर ठाकुर, नरेन्द्र ठाकुर, बाल कृष्ण, मंजु चिश्ती, देवेन्द्र राठौर, विक्की चैहान, कृष्णा ठाकुर, नीरू चांदनी, कला चैहान आदि लोक गायकों के संगीतमय सफर की सफलता में एस.डी. कश्यप का प्रमुख योगदान है।
वर्ष 2018 का ललित कला सम्मान खिम्मी राम को पारम्परिक शिल्पकला में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिया गया है। इनके द्वारा पारम्परिक मुखौटे, धातु मोहरे तथा वाद्य् यंत्रों आदि का निर्माण किया जा रहा है। शिल्प कला के इस पारम्परिक शिल्पी ने देश के विभिन्न राज्यों में हिमाचली शिल्प की पहचान कायम की है।
प्रत्येक कला सम्मान में 51 हजार रुपये की सम्मान राशि तथा सम्मान चिन्ह एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। अकादमी द्वारा वर्ष 2018 तक के कला सम्मान एवं शिखर सम्मान पहले ही घोषित किए जा चुके है और वर्ष 2019 के कला सम्मान तथा शिखर सम्मान के लिए आवेदन पत्र आमंत्रित कर लिए गए हैं। इस प्रकार इस साल अकादमी के साहित्य पुरस्कार, कला सम्मान, शिखर सम्मान, स्वैच्छिक संस्था सम्मान तथा चम्बा रूमाल एवं पहाड़ी चित्रकला प्रतियोगिता सम्मान भी अपडेट हो जाएंगे।