December 22, 2024

किशोरावस्था मानव जीवन का सर्वाधिक उत्पादक (प्रोडक्टिव) समय, वृद्धि एवं विकास के श्रेष्ठतम अवसरों का द्वितीय द्वार: सीडीपीओ 

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सुजानपुर / 16 फरवरी / न्यू सुपर भारत

मानव जीवन में किशोरावस्था, बाल्यावस्था एवं प्रौढ़ावस्था के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। असीम ऊर्जा, अद्वितीय सामर्थ्य एवं अथाह जोश की यह अवस्था न केवल मानव जीवन की सर्वाधिक उत्पादक अवधि है अपितु बाल्यावस्था के बाद वृद्धि एवं विकास का द्वितीय सर्वाधिक उपयोगी समय भी है। यही कारण है कि इसे विकास एवं वृद्धि के अवसरों का द्वितीय द्वार भी कहा गया है। बाल्यावस्था की पोषण-जनित समस्याओं के प्रभावों का यद्यपि पूर्ण निदान कभी भी संभव नहीं है तथापि किशोरावस्था में सही पोषण के द्वारा इन समस्याओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है और कुपोषण के दुष्चक्र को तोड़ा जा सकता है। उक्त विचार सीडीपीओ सुजानपुर कुलदीप सिंह चौहान ने ” वो दिन योजना” के अंतर्गत राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय चबूतरा में ‘किशोरावस्था एवं पोषण व्यवहार परिवर्तन’ विषय पर किशोर प्रतिभागियों  से संवाद करते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने किशोरों और किशोरियों को जानकारी देते हुए कहा कि बच्चों एवं किशोरों में वृद्धि एवं विकास के आकलन का सर्वाधिक उपयोगी एवं मानक उपाय वजन और लंबाई में दर्ज की जाने वाली बढ़ोतरी की निगरानी (ऑब्जर्वेशन) एवं विश्लेषण (एनालिसिस) है। किशोरावस्था में लड़कियों की लंबाई में 25 सेंटीमीटर तक और लड़कों की लंबाई में 30 सेंटीमीटर तक की वृद्धि होती है जो संपूर्ण जीवन काल की वृद्धि का लगभग छठा भाग (16%) है। इसी प्रकार इस अवधि के दौरान वजन में होने वाली वृद्धि संपूर्ण जीवन काल की वृद्धि का लगभग 50% होती है। इन आंकड़ों से किशोरावस्था की उपयोगिता एवं इसमें पोषण के महत्व को सहज ही समझा जा सकता है। वृद्धि एवं विकास कि इस दर को बनाए रखने के लिए इस काल में किशोरों को ऊर्जा से भरपूर  (एनर्जी डैंस) भोजन की अपेक्षा पोषण से भरपूर (न्यूट्रिएंट् डैंस) भोजन की आवश्यकता होती है।

इस दृष्टि से किशोरावस्था में मोटे अनाजों से युक्त भोजन ही सर्वाधिक उपयोगी भोजन है। ‘सुपर फूड’ एवं ‘स्मार्ट फूड’ से विख्यात हो रहे ये खाद्य पदार्थ न केवल सूक्ष्म पोषक तत्वों यथा कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, मैग्नीशियम, जिंक, पोटेशियम, विटामिन बी-6 एवं विटामिन बी-3 से परिपूर्ण हैं अपितु फाइबर एवं फाइटोकेमिकल्स के श्रेष्ठ भंडार भी हैं। इस आयु में तेजी से हो रहे विकास के दृष्टिगत सूक्ष्म पोषक तत्वों विशेषकर कैल्शियम (1300 मिलीग्राम प्रतिदिन) और आयरन (32 मिलीग्राम प्रतिदिन) की प्रचुर मात्रा की आवश्यकता रहती है। मोटे अनाज सूक्ष्म पोषक तत्वों के सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध स्त्रोत हैं। इस अवसर पर सिविल अस्पताल सुजानपुर से डॉक्टर सुमित ने पोषण विविधता एवं डॉ रुपाली ने सीजनल एवं रीजनल आहार, फलों एवं सब्जियों के उपयोग पर किशोरों और किशोरियों को जागृत किया।

डॉ सुमित ने पोषण विविधता पर जोर देते हुए कहा कि कोई भी एक भोजन व्यक्ति के विकास के लिए वांछित सभी पोषक तत्वों की आपूर्ति नहीं कर सकता। विविधता भोजन की उपयोगिता अनुकूलता और स्वीकार्यता में भी वृद्धि लाती है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि हम भोजन में विविधता को जीवन कौशल के रूप में विकसित करें।  डॉ रुपाली ने भोजन में मौसम और स्थानीयता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशिष्ट आहार उपलब्धता पसंद एवं स्वाद होता है जिसका उपयोग कर हम अपनी दैनिक पोषण आवश्यकताओं की कम लागत में पूर्ति कर सकते हैं। इस अवसर पर पोषण रंगोली का  आयोजन किया गया तथा मानव जीवन में पोषण महत्व पर पेंटिंग एवं नारा लेखन प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। पेंटिंग में आयना प्रथम, दीक्षा द्वितीय तथा नियति तृतीय स्थान पर रही। नारा लेखन में ऋषिका नंदिनी प्रथम, राधिका वर्मा द्वितीय तथा सपना कथियाल तृतीय स्थान पर रहीं।

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