मासिक धर्म के बारे पुरानी परंपरागत सोच को बदलना जरूरी : रजनीश रांगड़ा
हमीरपुर / 15 फरवरी / रजनीश शर्मा
मासिक धर्म कोई अपराध नहीं, बल्कि एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है। जिस पर घर और समाज में खुलकर बात की जाए तो इस दौरान स्वच्छता के महत्व को भी समझा जा सकता है। जिसके लिए हमें एक माहौल बनाना होगा और पुरानी परंपरागत सोच को बदलना होगा। इस सोच को बदलने में शिक्षा कि महत्वपूर्ण भूमिका है जिससे उनमें यह समझ और जागरूकता आती है कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, शर्मनाक नहीं। व्यग्तिगत स्वच्छता से जहाँ बेटियाँ स्वस्थ रहेंगी वहीँ उन्हें जीवन में आगे बढ़ने का विश्वास भी मिलेगा समाज में फैले बिभिन्न मिथकों को तोड़ने के लिए एवं प्यारी बेटियों के मुस्कान को सुरक्षित रख कर उन्हें बेहतर वातावरण देने के लिए स्वर्ण जयंती राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला ( उत्कृष्ट) टौणी देवी में ‘वो-दिन मासिक धर्म स्वच्छता योजना के तहत एक दिवसीय संवेदीकरण शिविर का आयोजन किया गया जिसमें 150 बेटियों को माहवारी के दौरान स्वच्छता
, पोषण आहार के बारे में जानकारी के साथ साथ माहवारी के दौरान माने जाने वाले छुआछूत, अंधविश्वास को दूर करने के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया गया ताकि उनका जीवन सुरक्षित और उज्जवल हो सके। यह जानकारी देते हुए प्रधानाचार्य रजनीश रांगड़ा ने बताया कि बाल विकास विभाग टौणी देवी के तत्वाधान में आयोजित इस तरह के जागरूकता शिविरों को आयोजित करने से बेटियों को इस अति संवेदनशील विषय को समझने में आसानी होगी और उनका आने वाला जीवन अधिक स्वस्थ व प्रसन्नता भरा होगा
महिला चिकित्सक डॉ आकांक्षा, डॉ दीक्षा एवं डॉ श्वेता ने कहा कि पूरे घर का ध्यान रखने वाली लड़कियां आज भी स्वयं से जुड़ी कई जरूरी बातों से अनजान हैं।अज्ञानता व खुले तौर पर इन विषयों पर चर्चा नहीं कर पाना इसका मुख्य कारण है। कुछ को इस मुद्दे पर बात करने में भी बहुत हिचकिचाहट महसूस होती है। लज्जा के कारण वे इन्हें ना कही जाने वाले बातों की सूची में शामिल करती हैं। उन्हें पता नहीं होता है कि पीरियड के दौरान वे किस तरह सफाई में ध्यान दें। जिसके चलते उन्हें कई समस्याओं से जूझना पड़ता है। कई बार बच्चियां ऐसे समय में चिड़चिड़ी हो जाती हैं, अवसाद में चली जाती हैं। जब बच्चियां बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करती हैं, तो यह समय उनके लिए बेहद अहम रहता है। हार्मोनल चेंजेस के कारण वे महत्वपूर्ण शारीरिक बदलाव के दौर से गुजरती हैं। जिसका सीधा असर उनके कोमल मन पर पड़ता है। माहवारी शुरू होने पर अधिकांश बच्चियां संकोच के कारण मां से इस विषय पर खुलकर चर्चा नहीं करती हैं।
जबकि उन्हें यह पता नहीं होता है कि इस दौरान वे क्या सावधानी बरतें, क्या करें और क्या न करें। इस अवसर पर बाल विकास परियोजना अधिकारी श्रीमती सुकन्या देवी ने कहा कि ऐसे समय में बालिकाएं किसी प्रकार का संकोच न करें और सारी बातें मां से खुलकर करें, साथ ही मां भी बेटियों की सहेलियां बनें। संमाज से भी उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या रोकने एवं सभी बेटियों एवं महिलाओं का सम्मान करने का आह्वान किया इस दौरान पेंटिंग प्रतियोगिता भी करवाई गयी जिसमें प्रथम शगुन ,द्वितीय चेतना जबकि पलक तृतीय स्थान पर रही सभी विजेताओं को सम्मानित किया गया और सभी बच्चों को जूस की बोतलों के साथ पेन भी वितरित किये गए इस कार्यक्रम में लीना, प्रोमिला, सुमन,तनु, अनिता, सुनीता ,कुसुम,रीता,कविता,अदिति ,नेहा,राजेश,लीला, ,सविता,ब्रिको के साथ सभी अध्यापिकाएं उपस्थित रहीं।