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अब खुशहाली की राह पर चल पड़े हैं गुरियाह के किसान **जायका परियोजना से बदल रही है गलोड़ क्षेत्र के इस गांव की तस्वीर

हमीरपुर / 6 सितंबर / न्यू सुपर भारत न्यूज़

मौसम की बेरुखी, खेतों में पानी एवं सिंचाई सुविधाओं की कमी तथा कृषि के संबंध में तकनीकी एवं वैज्ञानिक जानकारी के अभाव में छोटे किसानों के लिए अपनी जमीन से परिवार का गुजारा करना आसान नहीं है। यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी खेती से विमुख हो रही है। पीढिय़ों से पारंपरिक खेती कर रहे जिला हमीरपुर की ग्राम पंचायत गलोड़ के गांव गुरियाह के किसानों की कहानी भी दो वर्ष पहले तक कुछ ऐसी ही थी, लेकिन जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी यानि जायका के सहयोग से चलाई जा रही फसल विविधीकरण प्रोत्साहन परियोजना के बेहतर कार्यान्वयन के कारण गुरियाह के किसान अब खुशहाली की राह पर चल पड़े हैं। जायका परियोजना के कारण इस गांव में एक बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है जोकि अन्य क्षेत्रों के किसानों के लिए भी प्रेरणास्रोत साबित हो रहा है।     

दरअसल, सिंचाई के साधन न होने के कारण गुरियाह के किसान पूरी तरह मौसम पर ही निर्भर थे और केवल गेहूं तथा मक्की की फसलें ही उगाते थे। इनकी पैदावार भी बहुत कम होती थी तथा गांव के अधिकांश किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा ही साबित हो रही थी। मौसम की बेरुखी से परेशान गांव के कई किसान तो खेती से ही तौबा करने लगे थे। हताशा-निराशा के बीच जायका परियोजना इन किसानों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई।   

जायका परियोजना के तहत गांव गुरियाह के लिए एक उप-परियोजना स्वीकृत की गई। उप-परियोजना के तहत गांव में लगभग 52 लाख रुपये की लागत से एक लघु उठाऊ सिंचाई योजना का निर्माण किया गया। इस योजना में गांव के साथ बह रहे नाले से ही सौर ऊर्जा की मदद से पानी उठाकर एक बड़े भंडारण टैंक में डाला गया और वहां से अन्य छोटे टैंकों एवं आधुनिक सिंचाई उपकरणों से लगभग 10.76 हैक्टेयर भूमि के लिए सिंचाई का प्रबंध किया गया। यह योजना जून 2018 में चालू हो गई। अत्याधुनिक फव्वारा और टपक सिंचाई उपकरणों से पानी मिलने पर गांव के खेतों तथा किसानों को मानों नई संजीवनी मिल गई। 

लघु सिंचाई योजना और अन्य गतिविधियों के संचालन के लिए गांव में कृषक विकास संघ का गठन किया गया, जिसमें लगभग 35 किसान परिवार शामिल किए गए। जायका के माध्यम से ही गांव में लगभग 12 लाख रुपये की लागत से पक्की सडक़ का निर्माण किया गया। गांव में ढांचागत विकास कार्यों एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों से उत्साहित किसानों ने जायका की विभिन्न गतिविधियों में गहरी दिलचस्पी दिखाई और वे पारंपरिक खेती के साथ-साथ फसल विविधीकरण की ओर भी अग्रसर होने लगे। विशेषकर, सब्जियों और अन्य नकदी फसलों की ओर उनका रुझान बढऩे लगा। परियोजना के तहत किसानों को आधुनिक सिंचाई एवं कृषि उपकरण, मल्चिंग शीट्स तथा उन्नत बीज उपलब्ध करवाए गए।

किसानों की प्रति हैक्टेयर आय लगभग पांच गुणा हुई
अब गुरियाह के खेतों में पारंपरिक फसलों के साथ-साथ सब्जियों की भी अच्छी-खासी पैदावार हो रही है। सिंचाई सुविधा मिलने के बाद गेहूं और मक्की के उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जायका के ब्लॉक परियोजना प्रबंधक पी.सी. शर्मा ने बताया कि गुरियाह में पहले खरीफ सीजन में एक हैक्टेयर में औसतन 19 क्विंटल पैदावार होती थी, जबकि 2019 के खरीफ सीजन में यह बढक़र 24.06 क्विंटल तक पहुंच गई। इसी प्रकार 2019-20 के रबी सीजन में प्रति हैक्टेयर 24.76 क्विंटल पैदावार हुई, जोकि पहले औसतन 16 क्विंटल प्रति हैक्टेयर ही होती थी। 2019 के खरीफ सीजन के दौरान गांव की 1.5 हैक्टेयर भूमि और रबी सीजन 2019-20 में 2.7 हैक्टेयर क्षेत्र को सब्जी उत्पादन के अंतर्गत लाया गया। इस प्रकार जायका परियोजना के कारण गुरियाह के किसानों की आय में लगभग पांच गुणा वृद्धि हुई है। पहले यहां के किसानों को प्रति हैक्टेयर लगभग 55,736 रुपये आय होती थी, जबकि वर्ष 2018-19 में उनकी प्रति हैक्टेयर आय 2,74,170 रुपये तक बढ़ गई।

उपज के बेहतर विपणन और खाद्य प्रसंस्करण पर भी जोर
जायका परियोजना के तहत कृषि क्षेत्र में ढांचागत विकास एवं फसल विविधीकरण के साथ-साथ किसानों की उपज के बेहतर विपणन, खाद्य प्रसंस्करण, वैल्यू एडिशन और कृषि से संबंधित अन्य व्यावसायिक गतिविधियों पर भी विशेष बल दिया जा रहा है, ताकि किसानों की आय में अधिक से अधिक बढ़ोतरी हो सके। इसी के मद्देनजर गुरियाह में लगभग 37 लाख रुपये की लागत से कलेक्शन सेंटर बनाया गया है। इसमें लगभग दस लाख रुपये का कूलिंग चैंबर स्थापित किया गया है। इसके अलावा पारंपरिक फसलों, सब्जियों, फलों और जड़ी-बूटियों के प्रसंस्करण के लिए आधुनिक मशीनें तथा ग्राइंडर भी लगाए गए हैं।

जनभागीदारी से कामयाब हो रही है परियोजना
गुरियाह में जायका की गतिविधियों के संचालन में कृषक विकास संघ और स्वयं सहायता समूह के माध्यम से जनभागीदारी सुनिश्चित की गई है। गांववासियों ने उप-परियोजना के तहत ढांचागत कार्यों के लिए स्वेच्छा से जमीन दान की है। शिवा स्वयं सहायता समूह में शामिल गांव महिलाएं इसमें बहुत ही सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। इस समूह की सचिव सुषमा देवी, उपाध्यक्ष वीना शर्मा और कोषाध्यक्ष पूनम देवी ने बताया कि सब्जी उत्पादन से उनकी आय में अच्छी खासी वृद्धि हुई है। वे ढिंगरी मशरूम भी तैयार कर रही हैं तथा पिछले सीजन में उन्होंने पचास हजार रुपये से अधिक की मशरूम बेची। इसके अलावा वे ग्राइंडर और जूस मशीन से जड़ी-बूटियों का जूस, अर्क तथा बडिय़ां और सीरा जैसे पारंपरिक खाद्य उत्पाद भी तैयार कर रही हैं। स्थानीय बाजार में उन्हें इन उत्पादों के अच्छे दाम मिल रहे हैं। कृषक विकास संघ के पदाधिकारी देवराज बताते हैं कि जायका परियोजना से गुरियाह के किसान नए राह पर चल पड़े हैं। शुरुआती दौर में गांव के 35 परिवार इससे जुड़े थे। अब अन्य लोग भी फसल विविधीकरण को अपना रहे हैं।

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