शिमला / 09 मई / न्यू सुपर भारत
राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय संस्कृति को वर्तमान परिस्थिति के अनुरूप समझने की आवश्यकता है और भारत को विश्व की अग्रणी पंक्ति में लाने के लिए हमें अपनी गौरवशाली संस्कृति पर गर्व करना होगा।
राज्यपाल आज महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के अवसर पर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के शुभारम्भ अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद एक युग प्रवर्तक महापुरूष थे जिन्होंने समग्र क्रांति का सूत्रपात कर ‘वेदों की ओर लौट चलो’ का नारा दिया। उन्होंने कहा कि स्वामी जी ने वैदिक संस्कृति, धर्म और दर्शन की रक्षा के लिए वैदिक संदेश का प्रचार किया और वैदिक धर्म में आई विकृतियों को दूर करने के लिए ठोस प्रयास किए। उन्होंने समाज सुधार की दिशा में अनेक कार्य किये, जिनमें जाति प्रथा और अस्पृश्यता को दूर कर दलितों के उत्थान का कार्य, बाल विवाह और सती प्रथा का विरोध और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन आदि शामिल थे। उन्होंने कहा कि लोकप्रिय भाषा में वेदों का अनुवाद करवाने का श्रेय स्वामी दयानंद को जाता है।
राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित किया और परिणामस्वरूप आज पूरे देश में हजारों गुरुकुल चलाए जा रहे हैं, जहां से शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत छात्रों ने दुनिया भर में वैदिक संस्कृति की रक्षा की है। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद ने नारी जागृति का उद्घोष किया तथा उनकी शिक्षा के लिए अथक प्रयास किए जिसके फलस्वरूप अनेक कन्या गुरुकुल एवं महिला महाविद्यालयों की स्थापना हुई। उन्होंने कहा कि स्वामी जी ने वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए अनेक प्रयास किए। उन्होंने कहा कि संस्कार विधि, गोकरुणानिधि और सत्यार्थप्रकाश सहित उनकी लिखी कई पुस्तकें समाज को दिशा देने में मददगार साबित हुई हैं।
श्री शुक्ल ने कहा कि उन्होंने ही सबसे पहले स्वराज और स्वदेशी के महत्व को उजागर किया था। उनके तेजस्वी आह्वान से प्रेरित होकर कई भारतीय युवा स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए और देश को आजाद करवाने के लिए जो भी आंदोलन हुए वे किसी न किसी तरह से महर्षि दयानंद और उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज से प्रभावित थे। उनकी प्रेरणा और प्रभाव से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को अपार शक्ति मिली। उन्होंने कहा कि स्वामी जी की शिक्षाएं आज के परिवेश में अधिक प्रासंगिक हैं। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए संस्थान की सराहना भी की।
इससे पहले, आईआईएएस की शासी निकाय की अध्यक्ष प्रो. शशि प्रभा कुमार ने राज्यपाल का स्वागत किया और सेमिनार के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती के लेखन कार्यों विशेषकर संस्कृति एवं स्थानीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बालिका शिक्षा में उनके योगदान को याद करते हुए कहा कि उनके योगदान का ही परिणाम है कि आज महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
निदेशक आईआईएएस प्रोफेसर नागेश्वर राव और कुलपति, इग्नू ने नई दिल्ली से वर्चुअल माध्यम से सम्बोधित किया।
आईआईएएस के उपाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेन्द्र राज मेहता ने कहा कि महर्षि के कार्यों को विस्तृत रूप से जानने के लिए उनके युग का आकलन करना जरूरी है। 1875 में स्वामी दयानंद ने भारतीय परंपराओं के प्रति अंग्रेजों द्वारा दिए विचारों के खिलाफ विरोध की आवाज उठाई थी।
आईआईएएस के सचिव मेहर चंद नेगी ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया।इस अवसर पर राज्यपाल के सचिव राजेश शर्मा, विशिष्ट अतिथि पंडिता इंद्राणी रामप्रसाद, शिक्षाविद् और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।