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परमात्मा उन भक्तों के प्रेम से स्वयं बंधन में आने के लिए तत्पर हो जाते हैं जो उनका अनन्य भाव से चिंतन करते हैं :अतुल कृषण जी महाराज

ज्वार (ऊना ) / 05 नवम्बर / न्यू सुपर भारत न्यूज़

परमात्मा उन भक्तों के प्रेम से स्वयं बंधन में आने के लिए तत्पर हो जाते हैं जो उनका अनन्य भाव से चिंतन करते हैं। अतः समस्त आश्रयों का त्याग कर एकमात्र प्रभु श्रीहरि कीही षरण लेनी चाहिए। जो इस मानव देह में प्रभु का भजन न कर सुख खोजता है वह असली लाभ से वंचित रह जाता है।

सदैव याद रखना चाहिए कि यह शरीर क्षणभंगुर है।पता नहीं किस क्षण, कब इसका साथ छूट जाय। न तो इसे सुख स्वरूप समझ विषयों में फंसना चाहिए और न ही इस देह को नित्य समझ कर भजन में देरी करनी चाहिए। उक्त अमृतवचन श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस में परम श्रद्धेय अतुल कृषण जी महाराज ने कम्यूनिटी सेंटर, ज्वार में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवतकालजयी ग्रंथ है। यह काल को पराभूत कर देने वाला भगवान का अद्भुत विग्रह है।हमें संसार में कर्म तो करना है पर कर्म फल में असक्त नहीं होना है। भगवान कीप्राप्ति का साधन करना चाहिए संसार का नहीं। संसार की वस्तुएं भगवान की चाह मेंस्वतः ही आ मिलती हैं। हम प्रभु की कृपा प्राप्त करने के लिए उन्हीं के बन जांय। सदैवआनंद, प्रसन्नता एवं माधुर्य से भरे रहना ईष्वर की सर्वोत्तम भक्ति है।

महाराजश्री ने कहा कि श्रीमद्भागवत ब्रह्म विद्या है। इसको सुनने एवं सुनाने वाले दोनों ही परमगति के अधिकारीहैं। वह धरती एवं क्षेत्र धन्य है जहां भागवती कथा होती है। भगवान की कथाभवरोग को मिटाने वाली परम औशधि है। आज कथा में भगवान का गोकुल में जन्ममहोत्सव, पूतना उद्धार, माखन चोरी, कालिय नाग मर्दन, चीर हरण एवं श्रीगोवर्द्धन पूजाका प्रसंग सभी ने बड़ी श्रद्धा से सुना। इस अवसर पर भगवान को 56 भोग अर्पित कियागया। कथा 7 नवंबर तक जारी रहेगी।

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