राजा बन सोए थे गरीब बन कर भागे – सर -बलवंत
घुमारवीं / पवन चंदेल
करयलग में 18 अगस्त को हुई त्रासदी को रूंधी गले से बयान करते हुए 35 वर्षीय युवा वह कंप्यूटर शिक्षक बलवंत पटियाल ने बताया कि 18 अगस्त रविवार रात के समय जब वह अपने सदस्यों सहित घर में सोए तो उस टाइम सब ठीक था सभी सदस्य अपने-अपने कमरों में आराम करने चले गए , हालांकि बाहर काफी तूफान वह कड़कती बिजली का शोर था । लेकिन फिर भी उन्हें व उनके साथ के करीब 7 परिवारों को समय पर नींद भी आ गई । लेकिन जब वह सुबह उठे तो वह बिल्कुल गरीब बन चुके थे । सब कुछ जमीन में दब चुका था। पैरों के नीचे से जमीन फिसल रही थी तथा ऊपर से बड़े-बड़े पत्थर हवा में ऐसे उछल रहे थे जैसे मानो पतीले में चावल उबल रहे हो । यह दृश्य देखकर सुबह करीब 4:30 बजे नींद से एकदम जागे तथा दृश्य देखकर कुछ पल के लिए तो यह विश्वास ही नहीं हुआ कि यह हो क्या रहा है ।
उनके घर जमीन सहित नीचे को खिसक रहे थे आसपास के पेड़ एक दूसरे पर हवा में उछल कर गिर रहे थे तथा उनके मकान वहां पहुंच गए थे जहां उनके खेत थे । हर कोई अपने ही घर में चारपाई सहित चल रहा था दरवाजे खुल नहीं रहे थे । पशु जोर-जोर से आवाजें निकाल रहे थे । जब तक कुछ समझ आता तब तक काफी समय निकल चुका था । परंतु गनीमत यह रही कि तत्काल 7 परिवारों के करीब 23 सदस्य जैसे तैसे एक समतल सी चट्टान पर खड़े हो गए । अधिकांश लोग नंगे पांव थे बुजुर्गों को संभालना व चलाना मुश्किल हो रहा था कपड़े सिर्फ वही थे जो शरीर पर पहने थे ।अब उनके पास प्रश्न यह था कि अपनी जान कैसे बचाई जाए । उनके मोबाइल फोन की बैटरी भी लगभग खत्म होने के कगार पर थी ।क्योंकि तेज तूफान के चलते बिजली आपूर्ति रात से ही बंद हो चुकी थी । ऐसे में जैसे तैसे पड़ोस के लोगों को फोन किया कि हमें बचा लो हमारे पास बहुत ही कम जिंदा रहने का समय है । तभी लोग भागे भागे वहां पहुंचे । जब तक रस्सी वगैरह डालकर उन तक पहुंचाई जाती तब तक कुछ लोग दलदल में ही अपनी जान को जोखिम में डालकर हम तक पहुंचे तथा दलदल में फंसे लोगों को रस्सी के सहारे बाहर खींचा । तभी कुछ पशुओं को भी तत्काल बाहर निकाला । पटियाल ने रोते हुए भगवान का धन्यवाद करते हुए कहा कि वह शायद इस विपदा की घड़ी में स्वयं साक्षात विराजमान थे । क्योंकि जैसे ही 23 आदमी उस दलदल से बाहर आए तो जिस स्थान पर खड़े थे तभी वह चट्टान भी खींसक कर आंखों से ओझल हो गई ।
पटियाल ने बताया कि आज 15 दिन बीत जाने के बाद भी हमारा सबसे पहले सहारा इसी गांव के लोग बने जो हम 23 लोगों को खाना खिलाने के बाद खुद खाना खाते हैं । उन्होंने रोते हुए बताया कि जिस प्रकार एक मां अपने बच्चों को खाना खिला कर खुद बाद में भोजन खाती है । ऐसा ही हमारे साथ भी हो रहा है । उन्होंने इस अवसर पर प्रशासन व विशेषकर एसडीएम घुमारवीं शशि पाल शर्मा का भी विशेष आभार प्रकट करते हुए कहा कि वह ना केवल एक अधिकारी के रूप में बल्कि एक भाई के रूप में हमारे साथ इस दुख की घड़ी में अपना विभागीय काम छोड़ दिन रात खड़े हुए । उन्होंने विभिन्न संस्थाओं , महिला मंडल व उन लोगों का भी विशेष आभार प्रकट किया जिन्हें वे स्वयं तो नहीं जानते परंतु इस विपदा की घड़ी में वह सब हमारे साथ खड़े हुए । उन्होंने कहा कि यह 23 लोग सदैव उनके ऋणी रहेंगे । नेहा मानव सेवासोसाइटी सोसायटी घुमारवीं संस्थापक व सचिव पवन बिरूर द्वारा गत दिन ना केवल पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान की ,बल्कि उन जांबाज लोगों को भी सम्मानित किया जो देवदूत बनकर इन लोगों के साथ खड़े हुए तथा संस्था के इस कार्य को लेकर समाज में काफी प्रशंसा हो रही है ।