February 23, 2025

महात्मा गांधी ( MAHATMA GANDHI) की 150वीं जयंती के अवसर पर वेबीनार में साहित्यकारों और शोधार्थियों ने रखे अपने विचार

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धर्मशाला, 28 सितम्बर / न्यू सुपर भारत न्यूज़ –

जिला प्रशासन भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा 150वीं जयंती के अवसर आयोजित किये जा रहे कार्यक्रमों की कड़ी में आज उपायुक्त कार्यालय के एनआईसी सेंटर में महात्मा गांधी की वेबीनार के माध्यम से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के व्यक्तित्व और वर्तमान दौर में उनके विचारों की प्रासंगिकता विषय पर विभिन्न साहित्यकारों और शोधार्थियों ने अपने विचार सांझा किये।


इस अवसर पर मुख्य वक्ता डॉ0 गौतम व्यथित शर्मा, कुणाल किशोर, प्रभात शर्मा, प्रो0 युगल किशोर डोगरा, शक्ति चंद राणा, रमेश मस्ताना और दुर्गेश नंदन, जिला भाषा अधिकारी सुरेश राणा ने राष्ट्रपिता की दार्शनिकता की वर्तमान युग में प्रासंगिकता पर अपने विचार सांझा किये। वेबीनार  में शिवा पंचकर्ण, अदिति गुलेरी, शोधार्थी गीता और अंजना भी शामिल हुये।


  डॉ0 गौतम व्यथित ने कहा कि गांधीदर्शन को आत्मसात करने की आवश्यकता भी बड़ी शिद्दत से महसूस की जाने लगी है। सर्वधर्म सम्भाव की जीती जागती तस्वीर समझे जाने वाले गांधी जी मानते थे कि हिंसा की बात चाहे किसी भी स्तर पर क्यों न की जाए, परन्तु वास्तविकता यही है कि हिंसा किसी भी समस्या का सम्पूर्ण एवं स्थायी समाधान कतई नहीं है। आज दुनिया के किसी भी देश में शांति मार्च का निकलना हो अथवा अत्याचार व हिंसा का विरोध किया जाना हो, या हिंसा का जवाब अहिंसा से दिया जाना हो, ऐसे सभी अवसरों पर पूरी दुनिया को गांधीजी की याद आज भी आती है और हमेशा आती रहेगी। उन्होंने कहा कि सर्वोदय समाज गांधी के कल्पनाओ का समाज था, जिसके केन्द्र मे भारतीय ग्राम व्यवस्था थी।


प्रो0 युगल किशोर डोगरा ने अपने विचार रखते हुये कहा कि यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि गांधीजी, उनके विचार, उनके दर्शन तथा उनके सिद्धांत कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं तथा रहती दुनिया तक सदैव प्रासंगिक रहेंगे। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के विचारों को युवाओं तक पहंुचाना आज और भी अधिक आवश्यक हो गया है।


प्रभात शर्मा ने कहा कि महात्मा गांधी का स्वदेशी आंदोलन हमारे राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम का मूल-मंत्र था जबकि शक्ति चंद राणा ने महात्मा गांधी बारे अपने विचार रखते हुये कहा कि सत्य, अहिंसा, ब्रहमचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शरीर श्रम, आस्वाद, अभय, सर्वधर्म समानता, स्वदेशी और समावेशी समाज निर्माण की परिकल्पना ही उनका आदर्श रहा है। इस अवसर पर रमेश मस्ताना ने कहा कि महात्मा गांधी मातृ भाषा-राष्ट्र भाषा से जुड़ने को महत्व देते थे। हिन्दी के प्रति महात्मा गांधी का प्रेम बड़ा गहरा था। वे ज्यादातर हिन्दी भाषा का प्रयोग करने के पक्षधर थे।

कुणाल किशोर ने मंच संचालन किया और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दार्शनिकता की वर्तमान में प्रासंगिकता बारे में भी अपने विचार सांझा किये।
इस अवसर पर जिला भाषा अधिकारी सुरेश राणा ने कहा कि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर इस आधुनिक युग में स्वतंत्र भारत के साथ ही सम्पूर्ण विश्व में भी उनके विचारों को और भी अधिक महत्ता दी जा रही है। सत्य, अंहिसा का मार्ग जितना पहले प्रासंगिक था उससे कहीं अधिक आज भी है।

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