रामपुर बुशहर /12 सितंबर / भारद्वाज
नगर परिषद रामपुर बुशहर में इन दिनों न अध्यक्ष है और न ही उपाध्यक्ष है दोनों ही पद खाली चल रहे है। वहीं कार्यकारी अधिकारी के पद पर तहसीलदार रामपुर संभाल रहे है। अब सदस्यों की संख्या भी अल्पमत में आ गई है। विकास कार्य ठप्प हो गए हैं और ऐसे में नगर परिषद के अस्तित्व पर संकट के घने बादल मंडराने लगे हैं। हालात ये है कि एक सप्ताह के भीतर ही हाई कोर्ट के फैसले के फलस्वरूप 3 पार्षदों की नगर परिषद सदस्यता खारिज हो गई है। उन पर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के लाभार्थी होने के आरोप साबित हो गए। और दो पार्षदों के केस अभी चल रहे है। बता दें कि बीते चुनावों में वार्ड नम्बर 4 से प्रत्याशी रहे हेमन्त कश्मीरी ने पूर्व उपाध्यक्ष दीपक सूद के खिलाफ सरकारी भूमि पर नाजायज कब्जा करने का आरोप लगाते हुए एसडीम रामपुर की अदालत में इलेक्शन पिटिशन दायर की थी। यह मामला एसडीम कोर्ट में 3 वर्ष तक चलता रहा। इस दौरान दोनों पक्षों को सुनने के बाद एसडीएम ने सभी तथ्यों , राजस्व दस्तावेज ,कानूनी पहलू तथा इसी तरह के मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसलों के आधार पर 15 जनवरी को फैसला दिया। इसमें तत्कालीन उपाध्यक्ष दीपक सूद को सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का लाभार्थी पाया और उनकी सदस्यता खारिज कर दी।28 जनवरी को दीपक सूद ने एसडीएम रामपुर के आदेशों को डायरेक्टर अर्बन डेवलपमेंट हिमाचल की अदालत में अपील दायर कर चुनौती दी और फैसले के खिलाफ स्टे हासिल किया। लेकिन यहां भी 18 फरवरी को उनकी अपील खारिज हो गई जिसके फैसले को उन्होंने रिट पिटिशन माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी और फैसले के खिलाफ स्टे लिया। 22 अगस्त को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वी. सुब्रमण्यम की अगुवाई में डबल बेंच जिसमें जस्टिस अनूप चितकारा भी थे, ने डायरेक्टर अर्बन डेवलपमेंट हिमाचल की अदालत के फैसले को सही पाया और उन्हें सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का लाभार्थी पाते हुए उनकी अपील को खारिज कर दिया। जिस वजह से उनकी नगर परिषद की सदस्यता भी खारिज हो गई।इसके अलावा हाई कोर्ट में वार्ड नम्बर 5 के पार्षद पंकज शर्मा द्वारा दायर रिट पिटीशन को भी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का लाभार्थी साबित होने पर डिसमिस कर दिया और उनकी सदस्यता भी खारिज कर दी। इससे पहले वार्ड नम्बर 7 की पर्षद रीता बदल की भी रिट पिटीशन हाई कोर्ट द्वारा डिसमिस की गई थी। नगर परिषद रामपुर के इतिहास यह पहली बार है कि न तो यहां अध्यक्ष है न ही उपाध्यक्ष न ही कार्यकारी अधिकारी। कार्यकारी अधिकारी का अतिरिक्त कार्यभार तहसीलदार को सौंपा गया है। ऐसे में शहर में यह चर्चा है कि क्या जल्द ही उप चुनाव होंगे या फिर आधी अधूरी नगर परिषद चलती रहेगी।