कॉरपोरेट सेक्टर छोड़ राणा बंधुओं ने अपनाया मच्छली पालन,
– युवाओं के लिए बने रोल मॉडल10 जुलाई 2019 को मिला ‘बेस्ट इनलैंड फिश फार्मर ऑफ इंडिया’ का पुरस्कार मच्छली पालन से जुड़ा हिमाचल प्रदेश का पहला एफपीओ बनाया, साथ जोड़े 150 किसानों
ऊना / 21 फरवरी / न्यू सुपर भारत
राज्य में मच्छली पालन को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार ने अनेक सकारात्मक कदम उठाए हैं, जिनके काफी अच्छे परिणाम मिले है और मत्स्य पालकों की आमदनी में भी वृद्धि हुई है। लगभग 8 वर्ष पूर्व कॉरपोरेट सेक्टर छोड़कर घर वापस लौटे जिला ऊना के अनिल राणा व अखिल राणा ने मच्छली पालन को अपनाया और सरकार की योजनाओं से लाभान्वित होकर आज इस व्यवसाय से अच्छा मुनाफा कमा कर बेरोजगार युवाओं के लिए रोल मॉडल बन गए हैं। पंजावर निवासी राणा बंधुओं ने वर्ष 2013 में मच्छली पालन की दुनिया में पदार्पण करते हुए सरकार की ‘नेशनल मिशन फॉर प्रोटीन सप्लीमेंट’ योजना के तहत पंजावर में पहला तालाब तैयार किया। अपने काम से उत्साहित दोनों भाईयों ने इस योजना के तहत 2 हेक्टेयर भूमि पर मछली पालन का कार्य शुरू किया।
इसके बाद आई सरकार की ‘नीली क्रांति योजना’ के तहत पंजावर के राणा बंधुओं ने मच्छली पालन का क्षेत्र बढ़ाकर 4 हेक्टेयर कर लिया। अनिल राणा ने कहा “आमदनी अच्छी होने के चलते वर्तमान में चार हैक्टेयर के करीब भूमि तक मत्स्य पालन का कारोबार बढ़ा लिया है। हमारे तालाबों में 5-5 किलो वजन की मच्छली का उत्पादन हो रहा है तथा इससे अच्छा मुनाफा होता है। हम फार्म में रोहू, कतला और मृगल जैसी मच्छली की प्रजातियों के उत्पादन के साथ-साथ कॉमन कॉर्प व ग्रास कॉर्प का भी उत्पादन कर रहे हैं। इन प्रजातियों की बाज़ार में बहुत मांग रहती है और इनके बाजार में अच्छे दाम मिलते हैं। “वहीं अखिल राणा बताते हैं “हम मच्छली पालन के अपने व्यवसाय को सरकार की मदद से अगले स्तर पर पहुंचाना चाहते हैं। इसलिए हमने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लोक्स तकनीक के तहत तालाब बनाने व मच्छली की बिक्री के लिए दुकान बनाने को आवेदन किया है।
उम्मीद है कि जल्द ही सरकार हमें इसके लिए मदद प्रदान करेगी।”अपने फार्म में राणा बंधु सालाना 40 टन मच्छली का उत्पादन कर रहे हैं। एक हैक्टेयर में लगभग दस हज़ार फिंगर लिंगस (मच्छली का बीज) डाले जाते हैं, जोकि एक साल में लगभग 10 टन के करीब तैयार हो जाते है। इसी प्रकार चार हैक्टेयर में चालीस हज़ार फीगर लिंगस डालकर लगभग 40 टन मच्छली उत्पादन किया जाता है। मच्छली पालन के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए इन्हें नेशनल फिशरीज डेवलमेंट बोर्ड हैदराबाद ने 10 जुलाई 2019 को बेस्ट ‘इनलैंड फिश फार्मर ऑफ इंडिया’ का पुरस्कार भी प्रदान किया है। दिसंबर 2019 में मत्स्य पालन मंत्री वीरेंद्र कंवर ने भी राणा बंधुओं के फार्म का दौरा किया और बेहतर कार्य के लिए शुभकामनाएं दी।
एफपीओ बना आगे बढ़ाएंगे कारोबारदेश में मच्छली उत्पादन से जुड़े पांच एफपीओ में से एक ऊना जिला में बनाया गया है। जिसमें राणा बंधुओं ने क्षेत्र के 150 किसानों को जोड़ा है। कच्ची मच्छली को बेचने के साथ-साथ अब उनकी तैयारी फिश प्रोसेसिंग की भी है। मच्छली का आचार, कटलेट, फिश बर्गर आदि 17 तरह के उत्पाद बनाने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगाया जा रहा है, जिसके लिए दोनों भाईयों ने प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया है। मत्स्य पालन विभाग ने उन्हें इसकी ट्रेनिंग चेन्नई में करवाई है। इसके अलावा फीड मिल भी स्थापित कर ली गई है, जहां पर मच्छली, पोल्ट्री तथा पशु चारा तैयार किया जा रहा है। एफपीओ के सदस्यों को यहां से सस्ते दाम पर फीड उपलब्ध करवाई जाएगी।
मत्स्य क्षेत्र में होगा सबसे अधिक निवेशमत्स्य पालन मंत्री वीरेंद्र कंवर बताते हैं कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना को वित्त वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया जाना प्रस्तावित है। योजना के अंतर्गत मच्छली पालन के क्षेत्र में 20,050 करोड़ रुपए का निवेश होना है। इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक मच्छली उत्पादन में अतिरिक्त 70 लाख टन की वृद्धि करना है। उन्होंने बताया कि मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लॉक तकनीक, आएएस तकनीक, बर्फ़ उत्पादन तथा मच्छली के चारे का प्लांट लगाने तथा आउटलेट निर्माण के लिए सरकार की ओर से 40-60 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान की जाती है। महिलाओं, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लाभार्थियों को 60 प्रतिशत तथा सामान्य वर्ग के व्यक्तियों को 40 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है।