कम्बाईन मशीन से गेहूं की कटाई के उपरांत फसल अवशेषों को रीपर के माध्यम से भूस/तूड़ी बनवाकर किसान उठा रहे है दोहरा लाभ
नारायणगढ / 21 अप्रैल / न्यू सुपर भारत
गेहूं की कटाई के उपरांत बचे हुए अवशेष से भूस/तूड़ी बनाकर किसान लाभ कमा सकते है। अधिकत्तर किसान आजकल गेहूं की कटाई कम्बाईन मशीन से करवाकर बचे हुए फसल अवशेषों/फानों को रीपर के माध्यम से भूस बनवाते है। पहले जहां कुछ किसान जाने-अनजाने में फसल कटाई के बाद बचे हुए अवशेषों में आग लगा देते थे वहीं अब किसान जागरूक हो चुके है और फसल अवशेषों से भूस बनवा कर लाभ कमा रहे है।
इस बारे में जब अलग-अलग गांवों के कुछ किसानों से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि गेहूं की फसल कम्बाईन मशीन से कटवाने से किसानों को दोहरा लाभ होता है। एक तो लेबर की समस्या नहीं रहती, दूसरा गेहूं कटाई का काम जल्द हो जाता है और सस्ता भी पड़ता है।
गांव कंजाला के किसान मंगूराम ने कहा कि उन्होंने लगभग सात एकड़ में गेहूं की फसल की पैदावार की है और वे कम्बाईन मशीन के माध्यम से ही गेहूं की फसल कटवा रहे है और अब तक चार एकड़ फसल कटवा चुके है और रीपर मशीन से भूस/तूड़ी बनवाई है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों से किसानों के सामने लेबर की कमी की समस्या आ रही है। जिसे देखते हुए किसानों ने अब कम्बाईन मशीन का सहारा लिया है। उन्होंने कहा कि कम्बाईन मशीन से कटाई के उपरांत फसल के जो अवशेष बचते है उससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढती है और रीपर से भूस भी बन जाता है।
गांव काठेमाजरा के युवा किसान हरीश कुमार ने बताया कि उन्होंने 2 एकड़ गेहूं की फसल, प्रदीप कुमार ने 4 एकड़ फसल तथा सिंग राम ने लगभग 4 एकड़ फसल की कटाई कम्बाईन मशीन से करवाई है। इसी प्रकार गांव बड़ी बस्सी के किसान जीत सिंह ने लगभग 12 एकड़ गेहूं की फसल की कटाई कम्बाईन से करवाई है। इन किसानों ने बताया कि कटाई उपरांत बचे हुए फसल अवशेषों से उन्होंने रीपर के माध्यम से भूस बनवाया है। उन्होंने कहा कि कम्बाईन मशीन से कटाई करवाकर फसल का काम शीघ्रता के साथ समय पर हो जाता है और मौसम खराब होने पर फसल खराब होने का डर भी नहीं रहता है।
कृषि विभाग के अलावा, हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी गेहूं की खूंटी को खेत में आग न लगाने व पर्यावरण को सुरक्षित व स्वस्थ बनाएं रखने के लिए किसानों को जागरूक कर रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार वायु प्रदूषण से सांस, फेफड़ों से सम्बंधित बिमारियां तो होती है, सामान्य स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
जीवन प्रत्याशा में कमी व असमय मृत्यु भी हो सकती है। खेतों में आग लगाने से हवा में प्रदूषण के छोटे-छोटे कण से पी.एम. 2.5 का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है। इससे सांस लेने में तकलीफ होती है और कोरोना संक्रमित रोगियों के लिए ज्यादा घातक हो सकता है। अस्थमा और कैंसर जैसी बिमारियां भी हो रही है।
प्रभाव-गेहूं की खूंटी को जलाने से वायु प्रदूषण होता है। मिट्टी की जैविक गुणवता प्रभावित होती है। मिट्टी में मौजूद कई उपयोगी बैक्टीरिया व कीट नष्ट हो जाते है।
उपाय-राष्ट्रीय कृषि नीति का पालन करें। गेहूं की खूंटी को जलाने के बजाए इससे जैविक खाद बनाएं। इसका अन्य उपाय बायोमास एनर्जी, छप्पर बनाने तथा मशरूम की खेती आदि करने में करें।
यदि कोई भी किसान/व्यक्ति खेतों में गेहूं की खूंटी जलाता है तो आई.पी.सी. की धारा 188 के तहत उसे 6 महीने की जेल व 15000 रूपये तक का जुर्माना अथवा दोनों हो सकते है।
कृषि विभाग के एसडीओं रोशन लाल ने बताया कि किसान फसल के अवशेषों में आग न लगाये इसके लिए समय-समय पर किसानों को जागरूक किया जाता है और उन्हें बताया जाता है कि फसल के अवशेषों को खेत में ही जुताई कर मिला देने से फसल की उपजाऊ शक्ति बढती है। उन्होंने कहा कि रीपर आदि कृषि यंत्रों पर सरकार द्वारा सबसीडी भी दी जाती है। उन्होंने कहा कि नम्बरदारों, पंचायती राज संस्थाओं के निवर्तमान सदस्यों तथा गणमान्य लोगों के माध्यम से भी किसानों को जागरूक किया जाता है कि वे फसल के अवशेषों में आग न लगाये। फसल अवशेषों में आग लगाने पर जुर्माने व सजा का प्रावधान भी है।