*श्री आतिश चंद्र एवं डॉक्टर निर्जर वी कुलकर्णी संयुक्त सचिव (पीपी), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार
चंडीगढ़ / 26 अगस्त / न्यू सुपर भारत न्यूज़
टिड्डियां विश्व के सबसे पुराने घुमंतू कीट हैं । यह मूलतः शलभ हैं। इनकी अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं लेकिन उनमें से कुछ को ही टिड्डियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। टिड्डियों में यह सामर्थ्य होता है कि वे किसी ‘एकांत’ स्थान को ‘झुंडनुमा’ स्थान में बदल दें, जहां उनके समूह आसमान पर छा जाएं, ज़मीन पर लूट मचा दें एवं वहां रहने वालों के लिये परेशानी खड़ी कर दें।
सूखे के दिनों में एकांतवासी टिड्डियां उपलब्ध हरे भरे स्थानों पर इकट्ठी होती हैं एवं अधिकतर नुकसानदायक नहीं होती । उपयुक्त पारिस्थिकीय एवं जलवायु वाली स्थितियों के साथ ही इनके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में सेरोटोनिन के स्रावण से इनकी भीड़ बढ़ती जाती हैं जिससे यह अधिक मिलनसार होकर तेज़ गति से एक से दूसरे स्थान पर जाने वाली तथा भूख के मामले में तेज़ बनती जाती हैं । तत्पश्चात प्रजनन की उपयुक्त स्थितियां मिलते ही भारी मात्रा में प्रजनन शुरू हो जाता है । यदि उत्पात मचाना शुरू करती हैं तो इनका नियंत्रण करने में काफी मात्रा में धन, जनशक्ति एवं संसाधनों की आवश्यकता होती है ।
सभी टिड्डियों में मरुस्थलीय टिड्डियां सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं । इनकी मात्रा में बढ़ोतरी कोई नई चीज़ नहीं है । मरुस्थलीय टिड्डियों का उत्पात पृथ्वी के 20 प्रतिशत भूभाग को प्रभावित कर सकता है, दुनिया की जनसंख्या के दसवें हिस्से की आजीविका को ख़तरनाक ढंग से नष्ट कर सकता है एवं खाद्य सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
टिड्डियों के झुंड घने एवं उच्च गति से स्थान परिवर्तन करने वाले हो सकते हैं तथा हवा का रुख अनुकूल हो तो एक दिन में 150 किलोमीटर उड़ान भर सकते हैं । यह झुंड बड़ी मात्रा में वनस्पति एवं कृषि को चट कर सकते हैं । टिड्डी दल 1 वर्ग किलोमीटर से भी कम स्थान से लेकर 1000 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक स्थान तक फैला हो सकता है । प्रत्येक वर्ग किलोमीटर में पाये जाने वाले टिड्डी दल में 40 मिलियन से लेकर कुछ स्थितियों में 80 मिलियन तक वयस्क टिड्डियां हो सकती हैं। हर टिड्डी प्रतिदिन मोटे तौर पर अपने भार के बराबर (लगभग 2 ग्राम) वनस्पति चट कर सकती है।
मरुस्थलीय टिड्डियां कभी कभी प्रजनन के लिये भारत के रेगिस्तानी इलाकों का रुख करती हैं । भारत का अनुसूचित मरु क्षेत्र 2 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है एवं राजस्थान तथा गुजरात के कुछ हिस्सों में फैला है । वर्ष 2019-20 के दौरान, 26 साल के अंतराल के बाद, भारत पर एक बड़ा टिड्डीदल हमला हुआ जिस पर 22 मई 2019 से 17 फरवरी 2020 तक रिकॉर्ड क्षेत्र में उपचार कर सफलतापूर्वक नियंत्रण पा लिया गया । नियंत्रण पाने की इस कार्रवाई को एफएओ का समर्थन भी प्राप्त हुआ जब उनके वरिष्ठ टिड्डी पूर्वानुमान अधिकारी श्री कीथ क्रैसमेन ने 16-17 जनवरी, 2020 को अपनी भारत यात्रा पर भारत के प्रयासों की सराहना की एवं अपनी रिपोर्ट में कहा कि “एलडबल्यूओ द्वारा 2019 में किये गए प्रयास अन्य सहयोगियों जैसे किसान एवं अग्निशमन कर्मी तथा ज़िलाधिकारी द्वारा प्रभावित ज़िलों में प्रदान महत्वपूर्ण सहयोग से इसके फैलाव को रोक पाने में कारगर रहे। स्पष्टतया यदि यह नहीं किया जाता, राजस्थान में भारी मात्रा में फसल बरबाद होती जिससे पश्चिमी भारत तथा इससे भी अधिक क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा तथा आजीविका पर पर काफी प्रभाव पड़ता। ” यह असाधारण प्रयास यद्यपि मोटे तौर पर आमजन के संज्ञान में नहीं आए क्योंकि टिड्डियां साधारणतया अनुसूचित मरु क्षेत्र तक ही सीमित रहीं।
इस वर्ष हालांकि टिड्डियों को प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक तथा सोशल मीडिया में तरजीह मिली । बड़ी संख्या में वीडियो, ट्वीट एवं तस्वीरें आमजन द्वारा साझा की गई। टिड्डियां प्रसिद्ध हो गईं तथा देश भर में बातचीत का मुद्दा बन गईं। टिड्डियां यद्यपि छोटे समूहों में ही देश के अब तक अछूते रहे इलाकों में घूमी एवं देश के 10 प्रदेशों में 151 ज़िले टिड्डियों के मानचित्र पर दिखाई दिये । इस संघर्ष के दौरान इस बारे में जयपुर एवं दिल्ली समेत शहरों एवं कस्बों में जानने वाले हर व्यक्ति को उन्होंने रोमांच से भर दिया; एवं इस प्रकार हर एक- वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों, आलोचकों एवं बच्चों- का ध्यान आकर्षित किया। इससे मिथ्या सूचना समेत जानकारी का प्रसार होने से विशेषज्ञों के विचारों, सम्मेलनों इत्यादि में अचानक तेज़ी आई एवं टिड्डियों को नियंत्रित करने के बारे में सुझाव सामने आने लगे। हालांकि, यह स्वीकार किया गया है कि इनमें से कुछ सुझाव उपयोगी थे।
दस भारतीय प्रदेशों में टिड्डियों की यह औपन्यासिक यात्रा संभवतः इस तथ्य से जुड़ी है कि इस वर्ष मुख्यतः सीमा के उस पार पाकिस्तान में पिछले वर्ष की अनियंत्रित जनसंख्या के कारण टिड्डियां बहुत पहले आ गई । यह आकस्मिक हमला 11 अप्रैल को पहली बार देखा गया जब टिड्डियों को भारत में सीमा पार कर प्रवेश करते देखा गया एवं बाद में, गुलाबी अपरिपक्व वयस्कों के झुंड आने शुरू हो गए । मुसीबत बढ़ाने वाली बात यह रही कि टिड्डीदल को राजस्थान में सूखी जलवायु एवं वनस्पति की कमी मिली एवं वायु की अनुकूल गति से वह और आगे बढ़ गए तथा पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा एवं यहां तक कि उत्तराखंड (के कुछ भागों) में भी फैल गए ।
2020 का वर्ष टिड्डियों के परिवर्तित स्वभाव के कारण विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण रहा है- जैसा देखा गया है कि वह रात्रि में बहुत देर बाद शांत हुई एवं सुबह बहुत जल्द उड़ना शुरू कर दिया । वह अतिरिक्त तेज़ी से चलने वाली भी हैं एवं किसी भी शोर के प्रति बहुत संवेदनशील हैं । स्थानीय तूफानों की स्थितियों एवं मई में एम्फन तथा जून में निसर्ग की तीव्र चक्रवातीय हवाओं से टिड्डियों के झुंड विभक्त हुए, दोबारा मिले एवं अनेक बार पूर्वी भारत की ओर उनका अप्रत्याशित रुख हुआ ।
टिड्डियों के पहले हमले की रिपोर्ट सामने आते ही उपलब्ध छिड़काव से फौरन उन पर नियंत्रण के तौर तरीक़े अपनाए गए । पिछले साल के फैलाव पर केवल फरवरी, 2020 में ही नियंत्रण पाया जा सका वह भी जब टिड्डियों को देखे जाने का मामला पहली बार मई के अंत में संज्ञान में आया । इस पृष्ठभूमि के होते हुए क्षमता विकास तथा संसाधनों का पूर्वानुमान लगाया गया एवं भारत सरकार ने इस विपत्ति से राहत के लिये अतिरिक्त प्रयास किये । संसाधनों की मज़बूती, जनबल की तैनाती, जागरूकता निर्माण, क्षमता निर्माण समय रहते किया गया तथा इन सब पर ध्यान देने के साथ साथ रणनीतिक योजना को बनाने एवं उच्च स्तरीय निगरानी करने की व्यवस्था की गई। सहभागी नियंत्रण पर ज़ोर दिया गया जबकि प्रदेशों को संसाधनों एवं ज्ञान के स्तर पर सहायता पहुंचाकर उनका सशक्तिकरण किया गया । राज्यों को आरकेवीवाय तथा एसएमएएम योजनाओं के अंतर्गत सहायता प्रदान की गई । केंद्रीय आईपीएम टिड्डियों पर नियंत्रण करने में केंद्र प्रदेश सरकार के कर्मचारियों एवं अधिकारियों की क्षमता में वृद्धि का बीड़ा उठाए हुए हैं । प्रदेश सरकारों ने पूरी तरह साथ दिया है एवं वह अपने पिछले अनुभव का उपयोग भी कर रही हैं, साथ ही उन्होंने अतिरिक्त संसाधनों की तैनाती की है, विशेषकर ट्रैक्टर पर लगे छिड़काव उपकरणों एवं अग्निशमन वाहनों की।
भारत सरकार ने ब्रिटेन से 60 छिड़काव उपकरणों का आयात भी किया है, इस प्रकार एलडबल्यूओ की फेहरिस्त को 104 पहुंचाया है । 55 वाहनों का अधिग्रहण किया गया है । टिड्डियों पर नियंत्रण के लिये केंद्र सरकार के 200 कर्मचारियों को लगाया गया है जो दिन रात इस विपत्ति से, यहां तक कि इस बेहद कठिन कोविड19 की चुनौती के बीच भी, लड़ रहे हैं । सभी संबंधित प्रदेश प्रशासनों एवं कृषि विभागों से लगातार संवाद जारी है । समयबद्ध एवं तीव्र संवाद के लिये तथा अद्यतन तरीक़े से जानकारी साझा करने, सभी हिस्सेदारों के बीच दिशानिर्देश एवं स्थान साझा करने के लिये व्हाट्सअप समूह बनाए गए हैं ।
एक अन्य अजीब बात इस वर्ष यह देखी गई है कि टिड्डियां ऊंचे पेड़ों पर बैठने को तरजीह दे रही हैं, इस प्रकार उपलब्ध छिड़काव उपकरणों, जिन्हें ज़मीन पर या एक निश्चित ऊंचाई पर छिड़काव के दृष्टिकोण से बनाया गया है, के माध्यम से नियंत्रण की प्रक्रिया में मुश्किल आ रही है । भारत सरकार ने टिड्डियों पर नियंत्रण करने के लिये ड्रोन विमानों का उपयोग कर एक और उपलब्धि हासिल की है । एमओसीए एवं डीजीसीए के सहयोग से रिकॉर्ड समय में आवश्यक इजाज़त, प्रोटोकॉल एवं संचालन के आदर्श तौर तरीक़ों (एसओपी) को निर्धारित किया गया है । वर्तमान में टिड्डियों पर नियंत्रण के लिये 15 ड्रोन विमानों की तैनाती की गई है । इसके अतिरिक्त आकाशीय छिड़काव क्षमताओं को बेहतर बनाया जा रहा है । ब्रिटेन की कंपनी से मरुस्थलीय टिड्डियों पर लगाम हेतु भारतीय वायुसेना के हेलिकॉप्टरों में लगाने के लिये जीपीएस ट्रैकर लगे 5 सीडी ओटोमाइज़र किट अधिगृहीत किये गए हैं । इस बीच राजस्थान में अनुसूचित मरु क्षेत्र में उपयोग के लिये एक बेल 206-बी3 हेलिकॉप्टर की तैनाती की गई है । भारतीय वायुसेना भी टिड्डी-रोधी कार्रवाई में एमआई-17 हेलिकॉप्टर का ट्रायल कर रही है जिसको वायुसेना द्वारा लक्षित स्थानों पर रसायनों के छिड़काव के लिये विशेष रूप से तैयार किया गया है । इसके परिणाम उत्साहजनक हैं ।
गृह मंत्रालय ने भी अपनी ओर की मदद की पेशकश की है जिनमें वाहनों को किराए पर लेने की स्वीकार्यता, कीटों पर नियंत्रण हेतु फसलों की सुरक्षा वाले रसायनों के छिड़काव के लिये उपकरण लगे ट्रैक्टरों को किराए पर लेना; पानी के टैंकरों को किराए पर लेना तथा प्रदेश आपदा राहत कोष एवं राष्ट्रीय आपदा राहत कोष के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता के नये नियमों के तहत टिड्डियों पर नियंत्रण के लिये फसल सुरक्षा रसायनों की खरीद शामिल है । इस कदम ने टिड्डी रोधी कार्रवाई में प्रदेश सरकारों की और अधिक सहायता की है ।
विभिन्न स्तरों पर समीक्षा बैठकें की गई हैं (सम्माननीय कृषि मंत्रि, कैबिनेट सचिव, सचिव- डीएसी एवं एफडबल्यू, जेएस-पीपी), विभिन्न सरकारों के साथ अनेक वीडियो सम्मेलनों का आयोजन किया गया है तथा टिड्डियों पर नियंत्रण की तैयारी की लगातार समीक्षा की जा रही है । जागरूकता/ प्रशिक्षण साहित्य, कार्य संचालन के आदर्श तौर तरीक़े (एसओपी), स्वीकृत कीटनाशकों की सूची एवं जागरूकता हेतु वीडियो सभी हिस्सेदारों के साथ साझा किये गए हैं तथा सभी राज्यों से यह अनुरोध किया गया है कि आदर्श तौर तरीक़ों से टिड्डियों पर नियंत्रण के लिये आवश्यक तैयारी करें ।
साप्ताहिक आधार पर दक्षिण पश्चिमी देशों (अफगानिस्तान, भारत, इरान एवं पाकिस्तान) के तकनीकी अधिकारियों की आभासी बैठकें आयोजित हुई हैं । अब तक इस वर्ष 20 एसडबल्यूएसी-टीओसी बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं । इस क्षेत्र में टिड्डियों पर नियंत्रण के लिये तकनीकी सूचना साझा की गई है ।
अब तक (दिनांक 6 अगस्त 2020) 92 छोटे एवं मझौले टिड्डी दल एवं 11 वयस्क दल भारत-पाक सीमा क्षेत्र से भारत में प्रवेश कर चुके हैं । टिड्डी वृत्त कार्यालयों ने 247,346 हैक्टेयर क्षेत्र में नियंत्रण संबंधी कार्रवाई की है । प्रदेश सरकारें भी इन कार्यालयों के साथ संयुक्त रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से ट्रैक्टर पर लगे छिड़काव उपकरणों, अग्निशमन वाहनों तथा बस्ता-आधारित अन्य छिड़काव उपकरणों आदि के माध्यम से कृषि क्षेत्र में छिड़काव संबंधी कार्रवाइयां कर रही हैं । 10 टिड्डी प्रभावित प्रदेशों में आज तक कुल 249,403 हैक्टेयर क्षेत्र में टिड्डी रोधी कार्रवाई की गई है ।
सामूहिक प्रयासों एवं मॉनसून की बारिश के कारण टिड्डियां केवल राजस्थान एवं गुजरात के कुछ हिस्सों तक सीमित रह गई हैं । इन क्षेत्रों में टिड्डियों के उद्भव की निगरानी रखी जा रही है । प्रदेश सरकारों की सक्रिय भागीदारी से सर्वेक्षण एवं नियंत्रण संबंधी कार्रवाई तीव्र गति से जारी हैं ।
टिड्डियों पर नियंत्रण का वर्तमान चरण सितम्बर-अक्टूबर तक इस ऋतु के शीर्ष पर होगा । भारत टिड्डियों के प्रजनन पर नियत्रंण लगाने एवं उभरते टिड्डों पर प्रभावी एवं सक्षम लगाम लगाने के प्रति पूरी तरह आश्वस्त है । यद्यपि चुनौती अभी तक समाप्त नहीं हुई है । पिछले साल का अनुभव संतोषजनक नहीं कहा जा सकता क्योंकि पाकिस्तान में टिड्डियों की बची खुची संख्या भारत में हमला करती रहती है एवं इस प्रकार रबी की फसल की संभावना पर प्रतिकूत प्रभाव डालती रहती है तथा इसके परिणामस्वरूप भारत ने फरवरी, 2020 तक टिड्डियों पर नियंत्रण की बहुत लंबी कालावधि का अनुभव किया ।
टिड्डियां सीमापार जाने वाले कीट हैं एवं इनके लिये भारत-पाक सीमा के दोनों ओर प्रभावी तथा सम्मिलित प्रयासों की आवश्यकता पड़ती है । यदि नियंत्रण के उपाय सीमा के दूसरी ओर प्रभावी नहीं हैं, तो इससे भारत नुकसान में रहेगा । स्थिति आने वाले कुछ हफ़्तों में पता चलेगी ।
हालांकि टिड्डियों का यह दो वर्ष का समय हमारे लिये अनेक मोर्चों पर मददगार रहा है- मसलन ज्ञान, संसाधनों, क्षमता निर्माण, सहयोग, एवं प्रबंधन के मामले में; जबकि साथ ही साथ टिड्डियों पर नियंत्रण की बारीकियां समझने में सभी हिस्सेदारों को सक्षम बनाने के मामले में भी मददगार रहा है ।
जब इस ऋतु में टिड्डियों पर पूरी तरह नियंत्रण पा लिया जाएगा, एलडबल्यूओ प्रतिष्ठान का दोबारा आकलन करना उचित होगा क्योंकि टिड्डियों की विशेषता है कि उनकी गतिविधि एक दो साल तक अत्यधिक देखी जाती है तथा इसके बाद निष्क्रियता का लंबा कालखंड आता है । इसके अतिरिक्त लंबी अंतर्दृष्टि एवं तैयारी के लिये संपूर्ण अनुभव को आलेखित किये जाने की आवश्यकता है । यह भौतिक एवं मानवीय संसाधनों के दृष्टिकोण से एक स्थायी संदर्भ दस्तावेज़ के रूप में उपयोगी हो सकता है ।