शिमला / 12 मार्च / न्यू सुपर भारत
चाह की राह को अपनाकर रघुवीर यादव ने अपने अभिनय जीवन के कारवां को आगे बढ़ाया। कला संस्कृति भाषा अकादमी हिमाचल प्रदेश के साहित्य कला संवाद में रंगमंच, फिल्म और अभिनय के कुशल चितेरे चर्चित कलाकार रघुवीर यादव ने मण्डी से दक्षा शर्मा के साथ उन्मुक्त कण्ठ से अपनी अभिनय यात्रा के संस्मरण सांझा किए।
उन्होंने कहा कि संगीत से ही मेरी शुरूआत हुई और यह मेरे शरीर में रचा बसा है। किसी उस्ताद से मैंने इसकी विधिवत शिक्षा नहीं ली, जहां जो मिला उससे सीखता रहा। पापड़ वाले का सुर में गाकर पापड़ बेचना या फिर भीख मांगने वाले की सुरीली लय में भीख मांगना के ज्ञान ने भी मुझे संगीत के प्रति प्रभावित किया।
उन्होंने कहा कि मैं अपनी कमियों से सीखता रहा। जीवन की भूखमरी ने मुझे कला के प्रति सीखने के जज्बातों से जोड़ा, जिसकी बारीकियों ने मुझे गढ़ा है। रघुवीर यादव कहते है कि रंगमंच वास्तव में जिन्दगी जीने का सही सलीखा सिखाता है। वो कहते है रंगकर्म से जुड़े व्यक्ति को अपने आंख-कान खुले रखने की आवश्यकता है, जिससे जो सीखने को मिले सीख लेना चाहिए। यही सच्चे कलाकार की मिसाल है। उन्होंने कहा कि मैं भी सीखने की जिम्मेदारी और सोच को अपनाते हुए आगे बढ़ा हूं। मेरे लिए जीवन में रंगमंच से बढ़कर और कुछ भी नहीं है।
उन्होंने बताया कि थियेटर की शुरूआत पारसी रंगमंच से हुई लेकिन अब्राहम अल्काजी साहब से रंगकर्म की बारीकियां, अनुशासन तथा पहले शो से बेहतर दूसरा शो करने की प्रेरणा मिली। चरित्र की रूह में डूबना अल्काजी साहब की देन है। पारसी थियेटर ने जीवन को सुखद बनाने के लिए शरीर को खपाने का जज्बा कायम किया। तकलीफों और दिक्कतों से मिले तुजुर्बों ने जीवन को खुशनुमा बनाने के लिए मेहनत का जज्बा कायम किया।
रघुवीर यादव कहते है कि फिल्में करते हुए थियेटर का अनुभव बहुत काम आया। कैमरे के सामने कभी झूठ नहीं बोला जा सकता। उसमें कैमरा भी बराबर की मेहनत मांगता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल से मेरा बहुत लगाव रहा है। राष्ट्रीय नाटय विद्यालय नई दिल्ली में प्रवेश लेने से पहले अपने साक्षात्कार में मैंने हिमाचल लोक गीत भी गाया था।
उन्होंने बताया कि टुटू फिल्म की शूटिंग पालमपुर में की थी। इसके अतिरिक्त एक ओर फिल्म की शूटिंग के लिए धर्मशाला आया था। वो चाहते हैं कि शिमला आकर थियेटर करेंगे। रंगमंच में नवोदित कलाकारों के लिए संदेश देते हुए कहते है कि सबसे पहले हमें अपने आप को पहचानना है। अपनी खुबियों और खामियों को पहचानेे, खुबियों को और तराशे तथा खामियों को शिदत से दूर करें।
उन्होंने कहा कि रंगमंच अथवा फिल्मों में संघर्ष करने का अर्थ निरंतर सीखते रहना है। रास्ते अपने आप खुलते जाएंगे और अभिनेता कई जिन्दगियां जीता है। अपने साक्षात्कार में उन्होंने विभिन्न लोकगीतों को भी सांझा किया। पीपली लाइव फिल्म का गाना सखी संईया खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाय जात है तथा अन्य गीत उन्होनें अपनी सूरीली आवाज में सुनाए। बांसुरी बजाने के शौक और पीवीसी पाईप पर स्व निर्मित बांसुरी की मधुर धुन सुना कर सबको मंत्रमुक्त कर दिया। उल्लेखनीय है कि मैसी साहब मूंगेरी लाल के हसीन सपने, जामुन तथा कई फिल्मों में इनके द्वारा यादगार भूमिकाएं निभाई गई।