शिमला / 1 मार्च / न्यू सुपर भारत
सदी की चुनौती जिसका कोविड के रूप में एक बार मानवता ने सामना किया, उसने उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों को बुनियादी स्तर पर बदलकर रख दिया है। बजट को तैयार करना हमेशा एक कठिन कार्य रहा है। लॉकडाउन के कारण उत्पन्न चुनौती की ओर भारतीय रेलवे ने विशेष ध्यान दिया क्योंकि इसके परिणामस्वरूप यात्री ट्रेनों का संचालन प्रभावित हुआ था और साथ ही आमदनी पर भी असर पड़ा। आलोचकों का कहना है कि भारतीय रेलवे का परिचालन अनुपात बिगड़ गया है और आर्थिक रूप से अस्थिर हो गया है। पिछले दशकों में, भारतीय रेलवे को कई बार इस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और हर बार उसने मजबूती के साथ वापस उभर कर आलोचकों के मुंह बंद कराए हैं।
भारतीय रेलवे की समस्याओं से समितियां अच्छी तरह वाकिफ हैं। भारतीय रेलवे अपने में परिवर्तन करके नयापन ला रही है। चाहे वह नौकरशाही का मोटा ढांचा हो या के मोटे ढांचे या “किसी प्रकार की जिम्मेदारी” उठाने की मानसिकता रही हो। रेल भवन में हाल के सुधारों ने न केवल मुद्दों की पहचान की है, बल्कि उनका तत्काल समाधान किया है। बोर्ड के पुनर्गठन ने दशकों पुरानी विभागीय मानसिकता को समाप्त कर दिया है। किसी को भी उन सुधारों पर भी ध्यान देना चाहिए जो स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करने के लिए विपत्तियों और कमियों का विश्लेषण करते हुए भारतीय रेलवे ने किए हैं।
रेलवे की आमदनी पर वापस आते हैं। यह सच है कि भारतीय रेलवे को हाल के दिनों में वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। लेकिन ऐसा उसी समय हुआ है जब नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया है। व्यवसाय में अल्पकालिक समाधानों पर विचार नहीं कर सकते और करना भी नहीं चाहिए। एक बिंदु से परे माल भाड़े में वृद्धि करना भारतीय रेलवे और अर्थव्यवस्था के लिए प्रतिकूल है। भारतीय रेलवे हाल तक अपनी राजस्व प्राप्तियों से अपने राजस्व व्यय को पूरा कर रही थी। महामारी या आर्थिक गतिविधियों में गिरावट के कारण उत्पन्न कोई भी अल्पकालिक अंतराल रेलवे को खारिज करने का कारण नहीं हो सकता है। यहां तक कि जब सभी कार्यों को रोक दिया गया था और कोई आमदनी नहीं हो रही थी, तब भी रेलवे ने वेतन, पेंशन, पट्टे का शुल्क आदि के मद में अपने सभी बकाया का समय पर भुगतान सुनिश्चित किया। रेलवे का व्यय सर्वश्रेष्ठ तरीके से किए जाने के लिए उसकी सराहना की जानी चाहिए। सरकार द्वारा समय पर नीतिगत हस्तक्षेपों के कारण भारतीय रेलवे ने बचाव और सुरक्षा से समझौता किए बिना, आरई में कुछ हद तक सहायता के साथ 22,000 करोड़ रुपये की बचत का अनुमान लगाया है। विद्युतीकरण पर अतीत में किया गया निवेश पहले से ही शानदार लाभांश का भुगतान कर रहा है। उम्मीद है कि बड़ी लाइन (ब्रॉड गेज) वाले मार्गों के विद्युतीकरण के माध्यम से 14,500 करोड़ रुपये की बचत होगी। बहु-कार्यों और जनशक्ति संसाधनों का बेहतर उपयोग बड़े पैमाने पर उत्पादकता लाभ में मदद कर रहा है।
जबकि आरई ने 96.96 के संचालन अनुपात का अनुमान लगाया है, यह अल्पकालिक संसाधन अंतर को पूरा करने के लिए वित्त मंत्रालय से प्राप्त सहयोग के कारण है। सरकार द्वारा विस्तारित समर्थन यह सुनिश्चित करेगा कि रेलवे वित्तीय रूप से व्यवहार्य रहे और तेजी से अग्रिम का भुगतान करने में सक्षम हो।
कोविड-19 द्वारा उत्पन्न बेजोड़ चुनौतियों ने रेलवे की दृढ़ता को मजबूत किया है ताकि बाधाओं के बावजूद असाधारण चौतरफा प्रदर्शन सुनिश्चित हो सके। ट्रेनों से माल की आवाजाही ऐसे रिकॉर्ड तोड़ रही है जैसा पहले कभी नहीं हुआ और व्यवसाय के क्षेत्र में विकास प्रत्येक दिन नए आयाम छू रहा है। डिवीजन और जोनल स्तरों पर व्यवसाय विकास इकाइयों (बिजनेस डेवलपमेंट यूनिट्स-बीडीयू) का गठन, मालगाड़ियों की गति दोगुनी कर 23 किमी प्रति घंटे से 46 किमी प्रति घंटे, समयबद्ध पार्सल ट्रेनों की शुरुआत और रियायतों सहित वर्तमान माल भाड़े को युक्तिसंगत बनाने से माल लादने की विधि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ट्रेन की गति बढ़ाना ग्राहक के दृष्टिकोण से संपत्ति के उपयोग के लिए एक बेहतर संकेतक है। नई प्रौद्योगिकियों के नियोजित पूंजीगत व्यय और नई प्रौद्योगिकियों की शुरुआत से परिसंपत्तियों का बेहतर और सुरक्षित उपयोग सुनिश्चित होगा।
रेलवे एक व्युत्पन्न मांग है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में कोई भी मंदी रेलवे माल की मांग पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। महामारी के दीर्घकालिक प्रभाव का भी यात्री परिचालन पर अध्ययन किया जा रहा है।
“धन का निर्माण कोई छोटी दौड़ नहीं है। यह एक मैरॉथन है। बुनियादी ढांचे का निर्माण “देशों के आर्थिक विकास ” और आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक है। भारतीय रेलवे ने न केवल आरई में अपने पूंजीगत व्यय लक्ष्यों को बनाए रखा, बल्कि उन्हें पूरा करने के रास्ते पर है। आम बजट 2021-22 भारतीय रेलवे के लिए महत्वपूर्ण रहा है। रेलवे को बजट में 1.10 लाख करोड़ रुपये का “रिकॉर्ड” बजटीय आवंटन देखने को मिला है, जिसमें 2021-22 के लिए 2.15 लाख करोड़ रुपये का कुल पूंजीगत व्यय शामिल है।
राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के गठन को पूंजी पर लाभ के संकीर्ण चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। रेल संबंधी परियोजनाएं या कोई भी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं पूरी आबादी की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को प्रभावित करती हैं। यदि लाभ की दर को केवल न्यूनतम मानदंड के रूप में लिया जाए, तो केवल व्यापारिक केंद्रों के पास रेल कनेक्टिविटी होगी और भीतरी प्रदेश कनेक्टिविटी के सुरक्षित व पर्यावरणीय रूप से लाभप्रद माध्यम से वंचित रह जाएगा।
पूंजीगत व्यय योजना राष्ट्रीय निवेश पाइपलाइन के तहत आने वाली परियोजनाओं और विजन 2024 के तहत प्राथमिकता परियोजनाओं के लिए रेलवे को वित्तपोषित करने सक्षम करेगी। लाभकारी परियोजनाओं को निधि देने के लिए अत्यधिक प्रतिस्पर्धी दरों पर अतिरिक्त बजटीय संसाधन जुटाए जा रहे हैं। इस कार्य को पर्याप्त ऋण स्थगन के साथ किया जा रहा है ताकि रेलवे को ऋण जाल में फंसाए बिना ये परियोजनाएं स्वयं पूरी हो सकें।
उच्च पूंजीगत बजट जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर राज्यों में राष्ट्रीय परियोजनाओं को पूरा करने में मदद करेगा। राष्ट्रीय परियोजनाओं को 7535 करोड़ रुपये के आरई 20-21 के बदले बीई 21-22 में 12,985 करोड़ रुपये के उच्चतम परिव्यय का आवंटन किया गया था जो 72 प्रतिशत की वृद्धि है। समर्पित फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) और निर्धारित अवधि में किए गए अन्य महत्वपूर्ण कार्यों को बढ़ाने को प्राथमिकता दी गई है और वे सभी रास्ते पर हैं। कंपनियों में निवेश के लिए 37,270 करोड़ रुपये आवंटित किए गए है जिसमें से 16,086 करोड़ रुपये डीएफसीसीआईएल के लिए, 14,000 करोड़ रुपये एनएचएसआरसीएल के लिए और 900 करोड रुपये केएमआरसीएल के लिए आवंटित किए गए हैं। ये परियोजनाएं अन्य बुनियादी ढांचे और सुरक्षा कार्यों के साथ निर्माण उद्योग को बढ़ावा देंगी जिससे रोजगार सृजन होगा। रेलवे पूंजीगत व्यय का समग्र अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है।
रेलवे लगातार व्यवसाय की बदलती आवश्यकताओं को अपनाने, अपने अंदर नयापन लाने और अपनी आमदनी में सामाजिक दायित्वों को पूरा करते हुए राष्ट्र के लिए जीवन रेखा के रूप में जगह सुनिश्चित करने के लिए तैयार है।