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धन को तो तिजोरी में रख सकते हैं पर समय को नहीं : अतुल कृष्ण जी महाराज

ATUL KRISHAN JI MAHARAJ

ऊना , 08 नवम्बर ( राजन चब्बा ) :

धन को तिजोरी में रख सकते हैं पर समय को नहीं. ऐसे मूल्यवान समय को जो बर्बाद करता है वह स्वयं नाश को प्राप्त हो जाता है. प्रसन्न एवं निश्चिन्त मन हमारी आरोग्यता का मूल है. हमारे कुल में सदैव ही हरि भक्ति बनी रहे ऐसी प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए. जीवन में जानने योग्य वस्तु वह है जो सबको जानता है.


उक्त अमृत वचन श्रीमद् भागवत कथा के षष्ठम दिवस में परम श्रद्धेय स्वामी अतुल कृष्ण जी महाराज ने रक्कड़ में व्यक्त किऐ. उन्होंने कहा कि पुरुषार्थ और पुण्यों की वृद्धि से लक्ष्मी आती हैं, दान, सत्कर्म और कौशल से बढ़ती हैं, संयम एवं सदाचार से स्थिर रहती हैं. पाप, ताप और भय से आई हुई समृद्धि कलह और अशांति पैदा करती है. हमारा धर्म, आचार-विचार, संस्कृति, वर्ण व्यवस्था और इतिहास हमें परमात्मा की ओर चलने के लिए प्रेरित करते रहते हैं. हमारे सभी उत्सव, त्यौहार एवं पर्व भी अनंत भगवत् तत्व की ओर बढ़ने का संदेश देते हैं. जो सबके रोम-रोम में चेतना देने वाला परमात्मा है उसी के इर्द-गिर्द वैदिक सनातन संस्कृति का जीवन चक्र निरंतर गतिमान रहता है.


महाराजश्री ने कहा कि जिसके जीवन में दिव्य विचार नहीं है, दिव्य चिंतन का अभाव है वह चिंता की खाईं में गिरता है. चिंता से बुद्धि संकीर्ण होती है. चिंता से बुद्धि का विनाश होता है. चिंता हमारे शरीर में अनेक विकार उत्पन्न कर देती है. अज्ञान से भरा हुआ मनुष्य जिसकी आवश्यकता है उसे समझ नहीं पाता और जिसकी आवश्यकता नहीं है उसको आवश्यकता मानकर अपना अमूल्य जीवन नष्ट करता रहता है. आज कथा में भगवान श्री कृष्ण की दिव्य रासलीला, अहंकारी कंस का उद्धार, समुद्र में द्वारका नगर की स्थापना एवं रुक्मिणि मंगल का प्रसंग लोगों ने अत्यंत श्रद्धा से सुना.

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