मशरूम उत्पादन के जुनून ने पृथीचंद को दिलाया प्रगतिशील किसान का राष्ट्रीय पुरस्कार, बेटे-बहू सहित सैंकड़ों किसानों को भी दिखाई आत्मनिर्भरता की राह, एकीकृत बागवानी विकास मिशन बना सहायक
हमीरपुर / 30 अगस्त / न्यू सुपर भारत न्यूज़
“मशरूम को बच्चे की तरह पालना पड़ता है और बदले में यह हमें पालता है।” यह कहना है भूतपूर्व सैनिक एवं प्रगतिशील किसान राष्ट्रीय अवार्ड विजेता श्री पृथीचंद का। खुम्ब उत्पादन के प्रति जुनून की हद तक समर्पित पृथीचंद ने जो सपना आज से लगभग 22 वर्ष पूर्व देखा था, उसे वर्तमान प्रदेश सरकार की खुम्ब विकास योजना ने नए आयाम दिए हैं। उनके जुनून ने बेटे को विदेशी धरती से नौकरी छोड़कर स्वरोजगार अपनाने तथा बहू को आत्मनिर्भर बनने की ओर प्रोत्साहित किया।
भोरंज उपमंडल के मनोह गांव के रहने वाले पृथीचंद बताते हैं कि सेना से सेवानिवृत्ति के उपरांत वर्ष 1998 में उन्होंने मशरूम उत्पादन की ओर रूख किया। प्रथम प्रयास में जितनी राशि इसके उत्पादन पर व्यय की, आय उससे दोगुनी मिली। इससे उनका हौसला भी दोगुना बढ़ा और मशरूम की खेती को ही अपनी भावी जिंदगी का उद्देश्य मान लिया और समय-समय पर प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। घर की छत पर क्यारियां बनाकर शुरू हुआ उनका सफर अब लगभग 60 टन प्रतिवर्ष उत्पादन वाले शिव शक्ति मशरूम फार्म, मनोह के रूप में परिवर्तित हो चुका है। इसमें उनकी वर्षों की कड़ी मेहनत के साथ-साथ वर्तमान प्रदेश सरकार द्वारा उद्यान विभाग के माध्यम से चलाई जा रही बागवानी विकास योजना का भरपूर योगदान रहा है। गत वर्ष उन्हें प्रगतिशील मशरूम उत्पादक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
उद्यान विभाग से मिला 30 लाख से अधिक अनुदान
उन्होंने बताया कि वर्ष 2018-19 व 2019-20 में उन्होंने इस इकाई की स्थापना के लिए उद्योग विभाग के माध्यम से एकीकृत बागवानी विकास मिशन के विभिन्न घटकों में लगभग 30 लाख 60 हजार रुपए का अनुदान प्राप्त किया है। इनमें खुम्ब उगाने वाली इकाई पर 8 लाख रुपए, मशरूम कम्पोस्ट इकाई पर भी 8 लाख रुपए, स्पैन इकाई पर 6 लाख रुपए, ट्रैक्टर पर तीन लाख रुपए, ट्रॉली पर दो लाख रुपए, बहुद्देशीय रोलर पर दो लाख रुपए का अनुदान एमआईडीएच योजना के अंतर्गत मिला। वर्ष 2017-18 में बोर वैल के लिए 90 हजार रुपए तथा जल भंडारण टैंक के निर्माण पर 70 हजार रुपए का अनुदान भी प्राप्त हुआ।
लाभदायी योजना के लिए मुख्यमंत्री का जताया आभार
पृथीचंद के निरंतर प्रयासों से प्रेरित होकर उनके बेटे संदीप ने भी इसी व्यवसाय को अपनी आजीविका का साधन बना लिया है। ऑटोमोबाइल विषय में आईटीआई से डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद लगभग दस वर्षों तक बहुराष्ट्रीय कंपनी में विभिन्न देशों में नौकरी करने वाले संदीप साढ़े चार वर्ष पूर्व पिता का हाथ बंटाने घर लौट गए। उन्होंने मशरूम इकाई को आधुनिक रूप दिया और इसमें मशीनरी का समावेश किया जिससे उत्पादन में अप्रत्याशित तौर पर वृद्धि दर्ज हुई। उद्यान विभाग की योजनाओं का बेहतर उपयोग और सरकार के प्रोत्साहन से बैंकों से ऋण लेने में भी उन्हें काफी सहूलियत रही। इसके लिए वे मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर का विशेष तौर पर आभार भी व्यक्त करते हैं। उनका कहना है कि मशरूम उत्पादन का व्यवसाय नौकरी से कहीं अच्छा है और इस समय 30 से 35 लोगों को वे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार उपलब्ध करवाने में सक्षम हुए हैं।
पति का साथ निभाते आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ रही पूजा
संदीप की धर्मपत्नी पूजा शर्मा भी व्यवसाय में उनका हाथ बंटा रही हैं। पहले वह नजदीक के स्कूल में अस्थायी शिक्षिका के बतौर सेवाएं प्रदान कर रही थी। मगर, परिवार के प्रोत्साहन पर उन्होंने मशरूम का बीज तैयार करने का प्रशिक्षण सोलन एवं पालमपुर से प्राप्त किया और उसके उपरांत अब इसी व्यवसाय में आगे बढ़ते हुए आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर हैं। उनका युवाओं को संदेश है कि वे नौकरी के पीछे भागने के स्थान पर स्वावलंबी बनें। उनकी इकाई में भी अधिकांश महिलाएं ही कार्यरत हैं।
मधु शर्मा की बदली जिंदगी
खुम्ब उत्पादन इकाई स्थापित होने से समीप के गांव की मधु शर्मा की जिंदगी भी बदल गई। वे कहती हैं कि स्नातक व बी.एड. की शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत उन्हें सरकारी नौकरी के पीछे भागने के बजाय इस व्यवसाय में आय के बेहतर विकल्प नजर आए। वे यहां नौकरी के साथ-साथ घर में मशरूम इकाई स्थापित कर परिजनों के सहयोग से इसका उत्पादन भी कर रही हैं।
रजनी को घर के पास मिला स्थायी रोजगार
फार्म में ही कार्यरत एक अन्य महिला रजनी ने बताया कि पहले परिवार के गुजारे लायक आय भी बमुश्किल हो पाती थी, मगर घर के पास मशरूम उत्पादन इकाई स्थापित होने से वे प्रतिमाह सात-आठ हजार रुपए कमा रही हैं। इससे अब उनकी बच्चों की पढ़ाई के खर्चे सहित अन्य आर्थिक चिंताएं भी कम हुई हैं।
फार्म से जुड़े हैं डेढ़ सौ से अधिक किसान
इस फार्म में ओएस्टर एवं बटन मशरूम का उत्पादन किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त मशरूम का बीज एवं कम्पोस्ट भी तैयार कर जरूरतमंद किसानों को आपूर्ति की जा रही है। लगभग डेढ़ सौ किसान वर्तमान में इस इकाई के साथ जुड़े हुए हैं। उत्पादित मशरूम 100 से 120 रुपए प्रति किलोग्राम तथा बीज से भी लगभग इतनी ही कीमत प्राप्त हो रही है। इसकी आपूर्ति स्थानीय बाजार के अतिरिक्त मंडी व कुल्लू जिला तक हो रही है। इस वर्ष 80 टन उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
जिला में हो रहा 120 मिट्रिक टन उत्पादन
उपनिदेशक, उद्यान डॉ. सुरेश शर्मा ने बताया कि हमीरपुर जिला में लगभग 120 मिट्रिक टन मशरूम पैदा किया जा रहा है। इसमें मुख्यतया बटन मशरूम, ढिंगरी व मिलकी मशरूम की फसलें उगाई जा रही हैं। हिमाचल खुम्ब विकास योजना के अंतर्गत वर्ष 2020-21 में लगभग 32 लाख रुपए अनुदान का प्रावधान किया गया है।