February 2, 2025

शिव नगरी भरमौर में नहीं मनाया जाता है विजयदशमी का पर्व

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भरमौर / 15 अक्तूबर / महिंद्र पटियाल

विजयदशमी का पर्व देश के विभिन्न क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है, वही दूसरी तरफ शिव नगरी भरमौर में विजयदशमी का पर्व नहीं मनाया जाता है न ही रावण का पुतला जलाया जाता है, व रामलीला भी नहीं होती है, मान्यता के अनुसार रावण  शिव शंकर भगवान के परम भक्त थे, जिन्होंने शिव भक्ति के लिए कैलाश पर्वत पर कडी तपस्या की थी, भरमौर में भी मणिमहेश कैलाश पर्वत विराजमान है, जो की लाखों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र है|

लोककथाओं के अनुसार एक समय था जब भरमौर को ब्रह्मपुरा के नाम से जाना जाता था,व देवी ब्रमाणी का निवास  स्थान चौरासी में था किवदंती के अनुसार एक बार देवी किसी काम के चलते यंहा से चली गई तभी भगवान शिव आदियोगी ने अन्य 84 योगियों की टुकडी के साथ मणिमहेश कैलाश की और जा रहे थे |अपनी यात्रा के दौरान उनकी नजर इस स्थान पर पडी ,तो उन लोगों ने  थोडा आराम करने का फैसला किया, जब देवी वापिस आई तो उन्होंने अपनी इच्छा के विरुद्ध अपने निवास स्थान पर इन संतों को देखकर  काफी उग्र हो गई, और गुस्से में सभी योगियों और सिद्धों को यह स्थान छोडने के लिए कहा हंलांकि भगवान शिव ने उनसे एक रात के लिए रहने के लिए देवी से अनुरोध किया और आश्वाशन दिया की अगली सुबह चली जाऐंगे|

लेकिन किसी अज्ञात कारण से भगवान शिव अगले दिन कैलाश के लिए अकेले ही जाना पडा उनके इस असमर्थ होने के चलते खुद को 84 शिवलिंगों में बदल दिया भरमौर शिव नगरी को भोले शंकर का निवास स्थान भी माना जाता है रावण शिव भक्त होने के साथ महत्वाकांक्षी ब्राह्मण भी था

भरमौर चौरासी परिसर के साथ लगती अर्द्ध गंगा कु़ंड के साथ ही कपिलेश्वर महादेव का मंदिर है इस मंदिर के साथ ही एक दशमुखी की एक शिला भी है जिस शिला को रावण के रूप में माना जाता है इसलिए भरमौर में नवरात्रों में रामलीला का आयोजन भी नहीं होता और न ही महानवमी पर रावण का दहन किया जाता है, भरमौर के पंडित बाबु राम शर्मा, तिलक शर्मा,के अनुसार यह पंरपरा सदियों से चली आ रही है, 

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