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हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

राजगढ / 06 मार्च / गोपाल दत शर्मा

  हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक वैश्विक दिवस है जो महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों का जश्न मनाता है। यह दिन लैंगिक समानता में तेजी लाने के लिए कार्रवाई का भी संकेत है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसा दिन है जो पूरे इतिहास और दुनिया भर में महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिए समर्पित है, और आमतौर पर सभी अलग-अलग पृष्ठभूमि और संस्कृतियों की महिलाओं के लिए एक दिन है जो लिंग समानता के लिए लड़ने के लिए एक साथ आते हैं। ।8 मार्च को देश भर में इंटरनेशनल वूमंस डे मनाया जाएगा। कई कंपनियों, संस्‍थाओं, सरकारी और प्राइवेट ऑफिस के अलावा रहवासी सोसायटी, दोस्‍तों के बीच, क्‍लास में, स्‍कूल और कॉलेजों में इवेंट किए जाएंगे

हम 8 मार्च को महिला दिवस क्यों मनाते हैं?

1914 में, जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को आयोजित किया गया था, संभवतः क्योंकि वह दिन रविवार था, और अब यह हमेशा 8 मार्च को सभी देशों में आयोजित किया जाता है। जर्मनी में 1914 का दिन महिलाओं के मतदान के अधिकार के लिए समर्पित था, जिसे जर्मन महिलाओं ने 1918 तक नहीं जीता था

 अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस  देश व दुनिया में महिलाओं के अधिकारों की समानता को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मनाया जाता है। दुनिया में पहली बार इस तरह का कोई दिवस वर्ष 1900 में मनाया गया था। यानी आज हम इसके 120वें वर्ष के आयोजन में शामिल हो रहे हैं। पहले इसकी तारीख कुछ और थी, लेकिन 8 मार्च की महिला दिवस की पहचान है। यह किसी भी संस्‍था या कंपनी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे व्‍यापक पैमाने पर सरकारी, गैर-सरकारी, कार्पोरेशन, बोर्ड आदि द्वारा मनाया जाता है। शहरों में महिलाओं के सामाजिक योगदान को रेखांकित करने वाली रैलियों, पैदल मार्च, पेटिंग, रंगोली, ड्राइंग, आर्ट गैलरी आदि आयोजन किए जाते हैं। स्‍कूलों, कॉलेजों, संस्‍थानों व निकायों में भाषण व निबंध के आयोजन होते हैं। महिला दिवस के आयोजन का मुख्‍य मकसद महिलाओं की सुरक्षा एवं उनकी शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, करियर और अधिकारों के लिए अवसरों की तलाश है।

 अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस को सबसे पहली बार वर्ष 1911 में आधिकारिक रूप से पहचान मिली थी।

– इसके बाद वर्ष 1975 में United Nations यूनाइटेड नेशन्‍स (संयुक्‍त राष्‍ट्र) ने अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाना शुरू किया।

– 1908 में न्‍यूयार्क में कपड़ा श्रमिकों ने हड़ताल कर दी थी। उनके समर्थन में महिलाएं खुलकर सामने आईं थीं। उन्‍हीं के सम्‍मान में 28 फरवरी 1909 के दिन अमेरिका में पहली बार सोशलिस्‍ट पार्टी के आग्रह पर महिला दिवस मनाया गया था।

– 1910 में महिलाओं के ऑफिस की नेता कालरा जेटकीन ने जर्मनी में इंटरनेशनल वूमंस डे मनाए जाने की मांग उठाई थी। इस महिला का सुझाव था कि दुनिया के हर देश को एक दिन महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए मनाना चाहिये।

महिला दिवस की जब भी बारी आती है, हम केवल महिलाओं का गुणगान करके ही चुप हो जाते हैं लेकिन इस महत्‍पूर्ण दिन हमें कुछ सार्थक और गंभीर बातों पर ध्‍यान देना चाहिये। महिलाओं के लिए सबसे अहम बात है उनकी आर्थिक समझ और हालत सुधरे। हालांकि आज नौकरीपेशा महिलाओं की संख्‍या बढ़ी है लेकिन जो महिलाएं नौकरी नहीं करती हैं, उनको फाइनेंशियल प्‍लानिंग सीखना चाहिये। अगर वे बचत करना सीखेंगी तो बाद में बड़े खर्चों को वहन कर पाएंगी। उदाहरण के लिए, घर खरीदना, बच्‍चों की शिक्षा जैसे बड़े खर्च से निपटना चुनौती है और यह तभी हल हो सकती है जब महिलाएं फाइनेंशियल प्‍लानिंग कर पाएंगी। महिलाओं को आज सम्माननीय, सुरक्षित जीवन देने के लिए इश्योर्ड रहना बहुत जरूरी है। महिलाओं को जीवन बीमा, म्‍यूचुअल फंड, डाकघर की बचत योजना, हैल्‍थ इंश्‍योरेंस, टर्म इंश्‍योरेंस, बैंकों की बचत योजनाओं की जानकारी रखना चाहिये और अपनी सुविधा के अनुसार इसमें पैसा निवेश करना चाहिये ताकि उनका आर्थिक भविष्‍य सुरक्षित हो सके।

। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, उनका सम्‍मान करने के लिए ही यह दिन मनाया जाता है। 8 मार्च को मनाए जाने वाले महिला दिवस का महत्‍व अब हर साल बढ़ता जा रहा है। इसका आयोजन अब एक तरह की रस्‍म बन चुका है, जो कि समाज के आए अच्‍छे बदलाव का प्रतीक है। आज का दिन एक अवसर है कि हम महिलाओं के प्रति प्रेम, प्रशंसा, सम्‍मान और अपनापन व्‍यक्‍त करें।  हमारे समाज की महिलाएं कई लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती हैं।

 महिला सशक्‍तीकरण। यह शब्‍द सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। सबसे पहले तो महिलाओं को स्‍वयं अपने भीतर की ताकत को पहचानना होगा। सशक्‍तीकरण हमारे अंदर की प्रेरणा से आता है। आत्‍म सम्‍मान का यह भाव यदि होगा तो आपकी बाहरी दुनिया भी उससे सीधे तौर पर प्रभावित होगी। यह बात सही है कि महिलाओं को खुद को साबित करना है लेकिन वे यदि सकारात्‍मक होकर चीजों की ओर देखेंगी तो समस्‍याओं के हल भी निकलते जाएंगे। सशक्‍तीकरण एक विचार है, जिसे धरातल पर केवल दृढ निश्‍चय से ही उतारा जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं को अपने अन्दर की शक्ति जगाना होगी। महिलाओं को खुद में विश्वास का निर्माण करना सीखना होगा। अधिक प्रभावशाली बनने के लिए कौशल सीखना आवश्यक है। 

इंटरनेशनल वूमंस डे  इसका सीधा सा मतलब यह है कि देश, दुनिया, भाषा, संस्‍कृति और रहन-सहन की सीमाओं से परे आज पूरे विश्‍व की महिलाएं एक हैं। आज वे जिस भावना को महसूस करेंगी, उसमें समानता मुख्‍य भाव है। समानता ही वह शब्‍द है, जो इस दिवस को वजूद में लाया है। अब महिलाओं ने अपनी पहचान कायम कर ली है ऐसे में इसे कायम रखना सभी महिलाओं के लिए चुनौती भी है और दायित्‍व भी। घर, परिवार और समाज में महिलाओं की बढ़ती भागेदारी इस बात का प्रतीक है कि अब महिलाओं का सशक्तिकरण महज नारा या सिद्धांत नहीं रह गया है, यह जीता जागता सच और प्रैक्टिकल है। हालात पहले से जरूर बदले हैं लेकिन पूरी तरह से अभी भी नहीं बदल पाए हैं। महिलाओं की समस्‍याएं अभी भी बनी हुईं हैं। जब तक समाज का रवैया नहीं बदलेगा, महिलाओं की स्थिति संपूर्ण रूप से नहीं सुधरेगी।

अंतराष्‍ट्रीय महिला दिवस हर साल बड़े पैमाने पर देश और दुनिया में मनाया जाता है। जहां तक हमारे देश भारत की बात है, भारत में दो प्रकार की महिलाएं हैं। पहली वें जो जीवन में हर प्रकार से सुखी व सुरक्षित हैं और दूसरी वें जिनका पूरा जीवन शुरू से अंत तक संघर्ष की एक अंतहीन कहानी है। वर्तमान दौर की लड़कियों की बात की जाए तो ये लड़कियां आज बहुत से क्षेत्रों में भागेदारी कर रही हैं। पहले महिलाओं को कमजोर व सीमित माना जाता था लेकिन अब महिलाओं ने अपना महत्‍व साबित कर दिखाया है।

जो महिलाएं संपन्‍न एवं अमीर घरों से संबंध रखती हैं, उनके लिए जीवन एक आनंद की यात्रा है लेकिन गरीब और बेसहारा महिलाएं आज भी जीवन को एक यातना की तरह भुगत रही हैं। निश्‍चित ही देश की सरकार को इस तबके की महिलाओं के लिए गंभीरता से ना केवल विचार करना चाहिये बल्कि उनके लिए कल्‍याणकारी योजनाएं लाना चाहिये और उनका जीवन सुधारना चाहिये।

यदि कोई लड़की गरीब घर की है और केवल पैसों की कमी के चलते वह पढ़ाई नहीं कर सकती है तो समाज व सरकार को उसकी मदद के लिए आगे आना चाहिये। उसकी प्रतिभा का सम्‍मान किया जाना चाहिये। कामकाजी महिलाओं के सिर पर दोहरी जिम्‍मेदारी होती है। उन्‍हें पढ़ाई भी करना होता है और घर का खर्च भी वहन करना होता है। ऐसी संघर्षरत महिलाओं के लिए अच्‍छा समय अभी भी दूर है।

शादी के बाद इन महिलाओं का जीवन बदल जाता है। घर की जिम्‍मेदारियों के बोझ तले वे दब जाती हैं। संतान के जन्‍म के बाद उनके दायित्‍व बढ़ते जाते हैं। ऐसे में आखिर वे समझौता करने लगती हैं और खुद को प्राथमिकता पर रखना भूल जाती हैं। यह हमारे समाज और सरकारों का सामूहिक दायित्‍व है कि हम समाज की उपेक्षित, पिछड़ी, बेसहारा, गरीब और अनाथ महिलाओं को आगे बढ़ाएं ।।

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