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धौलासिद्ध ही नहीं कौलासिद्ध की समाधि पर भी नतमस्तक होते हैं श्रद्धालु

*योग शक्ति से गुरु के कटे सिर को धड़ से जोड़ दिया था कौलासिद्ध ने 

हमीरपुर / 12 फरवरी / रजनीश शर्मा 

बेशक जलविद्युत योजना के  कारण आज धौलासिद्ध का नाम लोगों की ज़ुबान पर है लेकिन धौलासिद्ध के एकमात्र परमशिष्य कौलासिद्ध के प्रति भी लोगों की श्रद्धा एवं विश्वास कम नहीं है। कौला सिद्ध , धौलासिद्ध के ही शिष्य थे जिन्होंने योगशक्ति से गुरु के कटे सिर को धड़ से फिर से जोड़ दिया था। इतना ही नहीं गुरु-शिष्य ब्यास नदी की लहरों पर सफ़ेद चादर बिछा ‘राफ़्टिंग’ करते थे। कई बार यह राफ़्टिंग नदी की विपरीत धारा के साथ होती थी।

आपको बता दें कि एसजेवीएनएल के साथ 66 मेगावाट की क्षमता वाली 650 करोड़ रुपए से बनने वाली धौलासिद्ध जल विद्युत परियोजना को आगामी साढ़े चार वर्ष (54 माह) में कम्प्लीट करने का एमओयू साइन हो चुका है इस प्रोजेक्ट में 800 लोगों को सीधी नौकरियाँ मिलेंगीं तथा हज़ारों लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार मिलेगा।

जिस सिद्ध के नाम पर इतना बड़ा बिजली प्रोजेक्ट बनने की दिशा में अग्रसर है, अफ़सोस की बात है कि उस धौलासिद्ध और कौलासिद्ध के मंदिरों में अबतक न तो बिजली की व्यवस्था है और न ही पीने के पानी की। इस बारे में जंदड़ू निवासी संतोष कुमार राणा ने उपायुक्त हमीरपुर को लिखित निवेदन भी किया लेकिन मंदिर अभी भी अंधेरे में ही है। संस्कृत के विद्वान डॉक्टर रत्तन चंद शास्त्री ने धौलासिद्ध व कौलासिद्ध की योगशक्तियों एवं इनसे जुड़े रहस्यों पर विस्तृत लेख लिखे हैं। इन्हीं लेखों के चुनिंदा अंश कौला सिद्ध और धौलसिद्ध की संक्षिप्त जानकारी यूँ दे रहे हैं:-

कौन है धौलासिद्ध
नादौन-सुजानपुर वाया बड़ा मार्ग पर जीहण के पास एक सिद्ध बाबा धौलासिद्ध के नाम से परियोजना का नाम रखा गया है। जीहण से चार किलोमीटर दूर ब्यास नदी के किनारे क़रीब चार सौ वर्ष पूर्व सिद्ध बाबा धौलसिद्ध ने तपस्या की थी।धौलासिद्ध ने रिद्धि व सिद्धि को वश में कर रखा था। उनके द्वारा ग़रीबों को दिया एक पैसा भी अक्षय भंडार माना जाता जो ख़र्च करने पर भी कभी ख़त्म न होता ।

कौन है कौलासिद्ध
ऐसे ही सिद्ध पुरुष के शिष्य हुए कौलासिद्ध । गुडराल राजपूत इनके प्रति विशेष श्रद्धा रखते हैं क्योंकि कौलासिद्ध का जन्म एक गुडराल राजपूत परिवार में लम्मेया दी धार गाँव में हुआ था। पाँच वर्ष की उम्र में ही कौलासिद्ध घरबार छोड़ धौलासिद्ध। के शिष्य बन गये। गुरु-शिष्य जंगलबेरी के पास स्थित स्थान पलाही में बहती ब्यास पर सफ़ेद चादर बिछा और इस पर बैठ जीहण के पास धौलासिद्ध पहुँच गए।

यह है जनश्रुति
जनश्रुति अनुसार लालचवश एक व्यक्ति ने धौलासिद्ध का सिर धड़ से अलग कर दिया। धड़ से अलग यह सिर आज भी एक चट्टान के रूप में व्यास नदी के किनारे मौजूद है। जिस दिन यह घटना घटित हुई उस दिन धौलासिद्ध के शिष्य कौलासिद्ध थाना टिक्कर ( ठान टिक्कर) में थे । दिव्यदृष्टि से उन्हें घटना का पता चला तो वह योगमार्ग से धौलासिद्ध पहुँचे और अपने गुरु का कटा सिर ढूँढ कर से धड़ से जोड़ दिया। इसके बाद धौलासिद्ध ने सारी शक्तियाँ कौलासिद्ध को दे दी। ऐसी मान्यता है कि जिस व्यक्ति ने धौलासिद्ध का वध किया था उस पीढ़ी के परिवार में आज भी अभिशापित अंगहीन , व्याधिग्रस्त चर्मरोगी बच्चा जन्म लेता है।

बाबा धौलासिद्ध के दरबार में ज्येष्ठ माह के वीरवार से यात्राएं शुरू होती और यह यात्रा कौलासिद्ध के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है।धौलासिद्ध के नाम के साथ ही कौलासिद्ध का नाम भी गुडराल राजपूतों में श्रद्धा से लिया जाता है।

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